घडी पास में होने पर भी जो समय के प्रति लापवाही करते है, समयवद्ध जीवनक्रम नहीं अपनाते उन्हें विकसित व्यक्तित्व का स्वामी नहीं कहा जा सकता है घड़ी कोई गहना नहीं है . उसे पहिनकर भी जीवन में उसका कोई प्रभाव परिलक्षित नहीं दिया जाता , तो यह गर्व की नहीं शर्म की बात है समय की अवज्ञा वैसे भी हेय है, फिर भी समय निष्ठा का प्रतीक चिन्ह (घडी) धारण करने के बाद यह अवज्ञा तो एक अपराध ही है
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उत्साह जीवन का धर्म , अनुत्साह मृत्यु का प्रतीक है उत्साहवान मनुष्य ही सजीव कहलाने योग्य है उत्साहवान मनुष्य आशावादी होता है और उसे सारा विश्व आगे बढ़ता हुआ दिखाई देता है विजय, सफलता और कल्याण सदैव उसकी आँख में नाचा करते है . जबकि उत्साहहीन ह्रदय को अशांति ही अशांति दिखाई देती है
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आज अनेको ऐसी पुराणी परम्पराये एवं विचारधाराये है जिनको त्याग देने से अतुलनीय हानि हो सकती है साथ ही अनेको ऐसी नवीनताये है जिनको अपनाए बिना मनुष्य का एक कदम भी आगे बढ़ पा सकना असंभव हो जायेगा नवीनता एवं प्राचीनता के संग्रह एवं त्याग में कोई दुराग्रह नहीं करना चाहिए बल्कि किसी बात को विवेक एवं अनुभव के आधार पर अपनाना अथवा छोड़ना चाहिए
साभार - पंडित श्री राम शर्मा आचार्य जी की कलम से
जय गुरुदेव
9 टिप्पणियां:
श्रीराम शर्मा जी ने बहुत ओजस्वी लिखा है। उन्हें पढ़ना सदैव अच्छा लगता है!
मिश्रा जी मै भी आचार्य जी के काफ़ी पुस्तक पढे है बहुत सुन्दर लगता है
आप की पोस्ट बढ़िया लगी। श्रीराम शर्मा जी की पुस्तकें मैंने भी कुछ पढ़ी हैं ----बहुत ही बढ़िया सार्थक संदेश।
शुभकामनायें.
बहुत सुंदर लिखा जी, लेकिन आज से ४० साल पहले घडी भी कहा सब को मिलती थी, तब तो यह गहना ही थी, फ़िर आई H N T की घडियां जो किसी गहने से कम नही होती थी
बहुत सुंदर विचार...धारण करने योग्य बातें बताएँ गये है..पढ़ कर बहुत अच्छा लगा..बधाई
घड़ी कोई गहना नहीं है .
Wah kya behteri baat kahi hai , ko samjhe bhi to !!
Shriram Sharma ke aashram se miklne wali dono magzines ka niyamit pathak hoon....
usmein lagbhag sabhi rachnaaiyen gyan chakshu ko kholne main sahayta pradan karti hai...
आचार्य जी मेरे भी फेवरिट रहे हैं
aasha का sanchaar utpan करता है मन में .......... सुन्दर vaani likhi है आपने .........
jeevan jeena ek baat hai aur sundar jeevan jeena doosari baat hai.aacharyaji ka sandesh jeevan ko sundar banata hai
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