23.11.09

तू ही बता दे जानम मेरी इस कलम की अदा क्या कम है

जब तक बहारे आती रहेंगी, तब तक फूल खिलते रहेंगें
तेरी यादे जेहन में रहेंगी, तब तक दिल जिन्दा रहेगा.
*
न जाने हर आशना न जाने दगा कर बैठा मुझसे क्यों
हर वक्त हम से हर बार रूठा था हमसे ही न जाने क्यों.
*
नफ़रत भरे तेरे अल्फाजो से हम कई कविताएं उकेरते है
तू ही बता दे जानम मेरी इस कलम की अदा क्या है कम.
*

10 टिप्‍पणियां:

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

वाह वाह

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

न जाने हर आशना न जाने दगा कर बैठा मुझसे क्यों
हर वक्त हम से हर बार रूठा था हमसे ही न जाने क्यों.

waah bahut khoob....

राज भाटिय़ा ने कहा…

महेंदर जी जबाब नही, अभुत सुंदर जी धन्यवाद

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

कितना सुंदर एहसास है..इसे प्रेम कहते है..बढ़िया शायराना अंदाज..अच्छा लगा..धन्यवाद मिश्र जी

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत ही उम्दा रचना लगी , आप ने तो गजब ढा दिया ।

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

nahi nahi aapki kalam ki ada mein kahi koi kami nahi hai..
bahut khoob..

Udan Tashtari ने कहा…

क्या बात है पंडित जी!!

निर्मला कपिला ने कहा…

न जाने हर आशना न जाने दगा कर बैठा मुझसे क्यों
हर वक्त हम से हर बार रूठा था हमसे ही न जाने क्यों.
बहुत खूब शुभकामनायें

महावीर बी. सेमलानी ने कहा…

मुन्नाभाई सर्किट की ब्लोग चर्चा

भाई महेंद्र मिश्र जी
मुन्नाभाई आपकी इस अदा पे फ़िदा हुऎ!
सुन्दर कविता पाठ के लिऎ मुन्नाभाई ने आपको शुभकामनाऎ देने को कहा है!

anilpandey ने कहा…

behatareen abhiwyakti ke liye dhanyawad.