चार दिनों की ये जिन्दगी मिलती है उधार
आंचल में खुशियाँ हो...तो आती है बहार
गर दिल को मिले आंसू और काँटों का हार
तो अक्सर प्यार की होती है...करारी हार
ये शाम फिर से अजनबी सी लगने लगी है
हरी भरी ये जिन्दगी वीरान लगने लगी है
जब वो हंसते है तो तोहमत याद आती है
न चाहकर भी दिल को बैचेन बना देती है
मेरे घरौदे की दहलीज पर वो कदम रखेंगे
बात कहने से पहले मुझे बहुत याद करेंगे।
आंचल में खुशियाँ हो...तो आती है बहार
गर दिल को मिले आंसू और काँटों का हार
तो अक्सर प्यार की होती है...करारी हार
ये शाम फिर से अजनबी सी लगने लगी है
हरी भरी ये जिन्दगी वीरान लगने लगी है
जब वो हंसते है तो तोहमत याद आती है
न चाहकर भी दिल को बैचेन बना देती है
मेरे घरौदे की दहलीज पर वो कदम रखेंगे
बात कहने से पहले मुझे बहुत याद करेंगे।
oooooo
7 टिप्पणियां:
सुन्दर गजल है जी।
मिश्र जी, क्या बात आज बड़े उदास मन से कविता लिखी आपने ?
gahre bhav.
बहुत लाजवाब मिश्र जी, शुभकामनाएं.
रामराम.
bahut badhiya ...blog par aane ka bahut shukriya.
यादों में वो, सपनों में है
जाए कहां धड़कन का बंधन तो धडकन से है,
मैं सांसों से हूं कैसे जुदा,
अपनों से लू कैसे विदा...
जय हिंद...
भावों की अभिव्यक्ति सुन्दर है, कुछ उदास सी कुछ आस भी...बधाई
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