काश इस सुहाने मौसम में तुम आ जाती
ये खामोश तन्हाई भी जन्नत बन जाती.
*
तेरी आँखों से एक मुद्दत से नहीं पी है
तेरी अंगड़ाई देखें बरसों गुजर गए है.
*
मेरी ये जिंदगी तेरे वगैर गुजर रही है
मेरी परछाई मुझे ही अब डराने लगी है.
*
ये खामोश तन्हाई भी जन्नत बन जाती.
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तेरी आँखों से एक मुद्दत से नहीं पी है
तेरी अंगड़ाई देखें बरसों गुजर गए है.
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मेरी ये जिंदगी तेरे वगैर गुजर रही है
मेरी परछाई मुझे ही अब डराने लगी है.
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14 टिप्पणियां:
सादर वन्दे !
परछाईयों की हकीकत हकीकत की परछाईं
क्या बात है कितनी बड़ी है इस सोच कि गहराई
रत्नेश त्रिपाठी
बहुत सुन्दर लगी रचना शुभकामनायें
क्या बात है महेंद्र जी बहुत बढ़िया शायरी..एक सुखद एहसास से भरी ..बढ़िया प्रस्तुति..आभार
काश इस सुहाने मौसम में तुम आ जाती
ये खामोश तन्हाई भी जन्नत बन जाती.
कामना है आपकी तन्हाई जन्नत बन जाय। बहुत खूब।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
...bahut khoob !!!!
काश इस सुहाने मौसम में तुम आ जाती
ये खामोश तन्हाई भी जन्नत बन जाती.
मिसिर जी बहुत सुंदर, बधाई
वाह महेन्द्र भाई वाह ,
क्या बात है ...मजा आ गया
तेरी आँखों से एक मुद्दत से नहीं पी है
तेरी अंगड़ाई देखें बरसों गुजर गए है.
यकीनन तडप की वजह भी तो है.
बहुत सुन्दर
बेहतरीन पंडित जी...वाह!!
बेहतरीन। बधाई।
वाह पण्डितजी, बहुत नायाब.
रामराम.
sundar rachna......badhayi
Bahut Aacha hai...
तेरी आँखों से एक मुद्दत से नहीं पी है
तेरी अंगड़ाई देखें बरसों गुजर गए है.
Wah !
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