16.12.09

ये खामोश तन्हाई भी जन्नत बन जाती....

काश इस सुहाने मौसम में तुम आ जाती
ये खामोश तन्हाई भी जन्नत बन जाती.
*
तेरी आँखों से एक मुद्दत से नहीं पी है
तेरी अंगड़ाई देखें बरसों गुजर गए है.
*
मेरी ये जिंदगी तेरे वगैर गुजर रही है
मेरी परछाई मुझे ही अब डराने लगी है.
*

14 टिप्‍पणियां:

aarya ने कहा…

सादर वन्दे !
परछाईयों की हकीकत हकीकत की परछाईं
क्या बात है कितनी बड़ी है इस सोच कि गहराई
रत्नेश त्रिपाठी

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत सुन्दर लगी रचना शुभकामनायें

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

क्या बात है महेंद्र जी बहुत बढ़िया शायरी..एक सुखद एहसास से भरी ..बढ़िया प्रस्तुति..आभार

श्यामल सुमन ने कहा…

काश इस सुहाने मौसम में तुम आ जाती
ये खामोश तन्हाई भी जन्नत बन जाती.

कामना है आपकी तन्हाई जन्नत बन जाय। बहुत खूब।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

कडुवासच ने कहा…

...bahut khoob !!!!

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

काश इस सुहाने मौसम में तुम आ जाती
ये खामोश तन्हाई भी जन्नत बन जाती.
मिसिर जी बहुत सुंदर, बधाई

अजय कुमार झा ने कहा…

वाह महेन्द्र भाई वाह ,
क्या बात है ...मजा आ गया

M VERMA ने कहा…

तेरी आँखों से एक मुद्दत से नहीं पी है
तेरी अंगड़ाई देखें बरसों गुजर गए है.
यकीनन तडप की वजह भी तो है.
बहुत सुन्दर

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन पंडित जी...वाह!!

मनोज कुमार ने कहा…

बेहतरीन। बधाई।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

वाह पण्डितजी, बहुत नायाब.

रामराम.

vandana gupta ने कहा…

sundar rachna......badhayi

pronav ने कहा…

Bahut Aacha hai...

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

तेरी आँखों से एक मुद्दत से नहीं पी है
तेरी अंगड़ाई देखें बरसों गुजर गए है.
Wah !