माइक्रो पोस्ट - मनुष्य पुरुषार्थ का पुतला है और उसकी सामर्थ्य और शक्ति का अंत नहीं है . वह बड़े से बड़े संकटों से लड़ सकता है और असंभव के बीच संभव की अभिनव किरणें उत्पन्न कर सकता है . शर्त यहीं है की वह अपने को समझे और अपनी सामर्थ्य को मूर्त रूप देने के लिए साहस को कार्यान्वित करें .
10 टिप्पणियां:
सारयुक्त बातें ,, बहुत अच्छी
वाह क्या बात कही है. यही बात कुछ दुसरे अंदाज में सम्राट अशोक ने रूपनाथ (आप के पास ही) में लिख छोड़ा है.
सच है ।
सही कह रहे हैं.
महेन्द्र भाई जान बहुत बाद राम-राम ................उम्दा ,सारगर्भित पोस्ट .............शुक्रिया . मैं ब्लॉग पर दुबारा जिंदा हो रहा हु .............
क्या बात है !!
आदित्य आफ़ताब "इश्क़" जी,
भाईजान ब्लागजगत में आपकी वापिसी का तहेदिल से स्वागत है ...जानकर बहुत अच्छा लगा मित्र.
एकदम वाजिब फ़रमाया पंडितजी आपने।
पंडित जी कहाँ हैं इनदिनों दिखाई नहीं देते ...........और जबलपुर की गर्मी .............आपकी अकली पेशकश के इंतज़ार में
Gagar mein saagar hai, Mishr ji
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