26.5.09

झील सी अपनी आँखों में डूब जाने दो मुझे

जिस्म जलता है बहुत दो पल नहाने दो मुझे
झील सी अपनी आँखों में डूब जाने दो मुझे.

हस्ती से बेजारी न थी मौत से यारी न थी
उन राहों पर चल दिए जिसकी तैयारी न थी.

फासला तो है मगर अब कोई फासला नहीं है
तुम मुझसे जुदा सही मगर दिल से जुदा नहीं.

आओ मै और तुम मिलकर चिरागेदिल जलाये
कल कैसी हवा चले यह कोई जानता ही नहीं
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22.5.09

याद कर गुजरे हुए पल चैन न मुझे तुझे न था


तेरे बिन ये जिंदगी गुजरती नहीं अब तेरे वगैर
जालिम जुल्मी रात भी कटती नहीं है तेरे वगैर.

अधूरे है तेरे बिन हम मत पूछ तू दिल का गम
पूर्णमासी की चांदनी देखने को नहीं करता मन .

याद कर गुजरे हुए पल चैन न मुझे तुझे न था
कोई शाम सजनी नहीं दिल में तेरे बिन तेरे वगैर.

खो गया है वो मौसम सुहाना गुजरा वो जमाना
उस पल की ख़ुशी ठहरती नहीं तेरे बिन तेरे वगैर।
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20.5.09

अक्सर ऐसा हो रहा है - नेता : महगाई :गरीब और गरीबी

नेता

चुनाव दर चुनावों के बाद अक्सर नेता कुर्सी की गंध लेकर दिनोदिन मालामाल होता जाता है अक्सर ऐसा हो रहा है .

महगाई
चुनावों से पहले और चुनावों के बाद महंगाई दिनोदिन बढ़ती जाती है पर बढ़ती मंहगाई को रोकने हेतु चुनाव लड़ रहे नेता या चुनावों के बाद कुर्सी की गंध प्राप्त करने वाले नेता मंहगाई घटाने की चर्चा ही नहीं करते है क्या किसी को उपकृत करते है ? ऐसा क्यों होता है यह समझ से परे है अक्सर ऐसा हो रहा है .

गरीब और गरीबी
चुनावों के बाद बड़ी बड़ी बाते की जाने के बाद गरीब और गरीब होता जा रहा है और नेताओं के आश्वासन और मंहगाई के तले और दिनोदिन दम तोड़ता जा रहा है और गरीब होता जा रहा है अक्सर ऐसा हो रहा है.

नेताओं के हारने और जीतने पर समीक्षा की जाती है और बढ़ती मंहगाई और मंहगाई के तले दम तोड़ती गरीबी और चुनावों पूर्व दिए गाये वादों की समीक्षा नहीं की जाती है इसे जनमानस का दुर्भाग्य कहा जाये तो कोई बड़ी बात नहीं है . अक्सर ऐसा हो रहा है .