26.5.09

झील सी अपनी आँखों में डूब जाने दो मुझे

जिस्म जलता है बहुत दो पल नहाने दो मुझे
झील सी अपनी आँखों में डूब जाने दो मुझे.

हस्ती से बेजारी न थी मौत से यारी न थी
उन राहों पर चल दिए जिसकी तैयारी न थी.

फासला तो है मगर अब कोई फासला नहीं है
तुम मुझसे जुदा सही मगर दिल से जुदा नहीं.

आओ मै और तुम मिलकर चिरागेदिल जलाये
कल कैसी हवा चले यह कोई जानता ही नहीं
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9 टिप्‍पणियां:

श्यामल सुमन ने कहा…

जिस्म जलता है बहुत दो पल नहाने दो मुझे
झील सी अपनी आँखों में डूब जाने दो मुझे.

सुन्दर पंक्तियाँ। एक चुटकी यूँ ही-

भला डूबते क्यों वहाँ जहाँ आँख हो झील।
संभव हो तो खोज लें पहले एक वकील।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

P.N. Subramanian ने कहा…

सुन्दर रचना. एक चुटकी हम भी लिए लेते हैं. डूबने के लिए भेडाघाट भी बुरी जगह नहीं है.दूसरा आप्शन ग्वारीघाट है. तालों का पानी तो उतर चुका होगा.

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

जो कुछ है,
पहले ही शेर में है!

Udan Tashtari ने कहा…

हस्ती से बेजारी न थी मौत से यारी न थी
उन राहों पर चल दिए जिसकी तैयारी न थी.


-बहुत बढ़िया!!

बेनामी ने कहा…

बहुत बढ़िया!

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

जिस्म जलता है बहुत दो पल नहाने दो मुझे
झील सी अपनी आँखों में डूब जाने दो मुझे....
बहुत बढ़िया!

Science Bloggers Association ने कहा…

बहुत खूब।
वैसे इसमें किसी को कोई आपत्ति भी नहीं होनी चाहिए।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

vandana gupta ने कहा…

shandar.........bahut sundar.har sher lajawab.

mere blog par bhi nazar dalein.

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर