शख्स कितना कमजोर था आइना बनाने वाला
जीतता रहा है वो अक्सर पत्थर बनाने वाला.
यूँ ही चुपचाप से गुजर गया बहुत चाहने वाला
महसूस किया पत्थर से मेरा दिल कुचल गया.
उनकी सजी संवरी हुई जुल्फे हाय क्या कहने
मैंने निगाह डाल कर जुल्फों को मैला कर दिया.
न सलाम याद रखना न मेरा पैगाम याद रखना
आरजू है जानी दिल में मेरा नाम याद रखना.
दिल को ठेस लगी है फाड़कर दिखा नही सकते
दिली ठेस को सुनाना चाहे तो सुना नही सकते.
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12 टिप्पणियां:
बढिया है । कविता से हटकर शायरी में हाथ आज़माने की कोशिश जारी रखिए ।
न सलाम याद रखना न मेरा पैगाम याद रखना
आरजू है जानी दिल में मेरा नाम याद रखना
waah bahut sundar
FAAD DIYA BOSS aapne to,
nice poetry.
ALOK SINGH "SAHIL"
न सलाम याद रखना न मेरा पैगाम याद रखना
आरजू है जानी दिल में मेरा नाम याद रखना.
दिल को ठेस लगी है फाड़कर दिखा नही सकते
दिली ठेस को सुनाना चाहे तो सुना नही सकते.
bahut khoob
बहुत बढिया।
mahendra bhaai
aapke padya[kavita cum gazal] ke bhaav bade jor daar hain.
kash aise lekhan ko bhi sahitykaar SARAAHNE lagen.
aapke is prayog ko bhavishy tay karega ki ham aazad panchhiyon se saahityaakash men vichran kar paayenge athwa nahin
mere vichaar se sandesh sampreshan men saksham vaaky sadaiv achchhe lagte hi hain..
aapka
vijay
सुन्दर कविता और डेजलिंग फोटो।
बहुत खूब महेंद्र जी....लिखते रहिये...
नीरज
दोनों में मेरा मुवक्किल बनने की योग्यता है, कविता और चित्र दोनों कातिल हैं।
अजी ऎसा धांसु फ़ोटू लगोगे तो दिल को ठे्स तो लगे गई ही ना.
धन्यवाद
न सलाम याद रखना न मेरा पैगाम याद रखना
आरजू है जानी दिल में मेरा नाम याद रखना
" interetsing to read.."
Regards
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