मेरा दिल चाहे, कि कोई तो मेरा हो
मै वहां जाऊ, जहाँ हासिल हो खुशी.
मेरा दिल, ऐसे दिलदार को तरसता है
दिल से मेरे प्यार को,दिल में बसा ले.
दो बाते, जी चाहकर भी कर न सके
वो फ़िर, करके इकरारे मोहब्बत गए.
खुली थी आंख, वो दिल में समां गए
सीने में आग लगा गए, जब वो गए.
न समझेंगे न समझे अपना ख्याल करो
कुछ तो रहम, उस शोख जवानी पे करो.
न दिल पे एतबार न तुझ पे इख्तियार
फ़िर भी न जाने, क्यो तेरा इंतजार है.
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11 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया मिश्राजी.
न दिल पे एतबार, न तुझपे इख्तियार, फिर भी इन्तजार - वाह क्या खूबसूरत पंक्तियां हैं।
बहुत बढिया.
बहुत सुन्दर रचना है।
इतनी जोरदार लाईने हैं कि लगता है महेंद्र जी सचमुच किसी की मुहब्बत में मुब्तिला हो गए हैं ! सांत्वना !
अजी दिल को सम्भांल कर रखे, यह बहुत चंचल होता है,
सुंदर रचना के लिये आप का बहुत धन्यवाद
बहुत अच्छे मिश्रा जी...लिखते रहें...
नीरज
" bhut pyaree nazuk bhavnayen.."
Regards
न दिल पे एतबार...
बहुत प्यारा शेर है, बधाई।
वाह बहुत खूब लिखा है आपने.
नमस्कार, उम्मीद है की आप स्वस्थ एवं कुशल होंगे.
मैं कुछ दिनों के लिए गोवा गया हुआ था, इसलिए कुछ समय के लिए ब्लाग जगत से कट गया था. आब नियामत रूप से आता रहूँगा.
बहुत बढिया.
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