24.11.08

दिल से मेरे प्यार को,दिल में बसा ले.

मेरा दिल चाहे, कि कोई तो मेरा हो
मै वहां जाऊ, जहाँ हासिल हो खुशी.

मेरा दिल, ऐसे दिलदार को तरसता है
दिल से मेरे प्यार को,दिल में बसा ले.

दो बाते, जी चाहकर भी कर न सके
वो फ़िर, करके इकरारे मोहब्बत गए.

खुली थी आंख, वो दिल में समां गए
सीने में आग लगा गए, जब वो गए.

न समझेंगे न समझे अपना ख्याल करो
कुछ तो रहम, उस शोख जवानी पे करो.

न दिल पे एतबार न तुझ पे इख्तियार
फ़िर भी न जाने, क्यो तेरा इंतजार है.

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11 टिप्‍पणियां:

Abhishek Ojha ने कहा…

बहुत बढ़िया मिश्राजी.

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

न दिल पे एतबार, न तुझपे इख्तियार, फिर भी इन्तजार - वाह क्या खूबसूरत पंक्तियां हैं।

Anil Pusadkar ने कहा…

बहुत बढिया.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना है।

Arvind Mishra ने कहा…

इतनी जोरदार लाईने हैं कि लगता है महेंद्र जी सचमुच किसी की मुहब्बत में मुब्तिला हो गए हैं ! सांत्वना !

राज भाटिय़ा ने कहा…

अजी दिल को सम्भांल कर रखे, यह बहुत चंचल होता है,
सुंदर रचना के लिये आप का बहुत धन्यवाद

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बहुत अच्छे मिश्रा जी...लिखते रहें...
नीरज

seema gupta ने कहा…

" bhut pyaree nazuk bhavnayen.."

Regards

admin ने कहा…

न दिल पे एतबार...
बहुत प्यारा शेर है, बधाई।

Manuj Mehta ने कहा…

वाह बहुत खूब लिखा है आपने.

नमस्कार, उम्मीद है की आप स्वस्थ एवं कुशल होंगे.
मैं कुछ दिनों के लिए गोवा गया हुआ था, इसलिए कुछ समय के लिए ब्लाग जगत से कट गया था. आब नियामत रूप से आता रहूँगा.

डॉ .अनुराग ने कहा…

बहुत बढिया.