आँगन में आज फ़िर से गुलाब खिला है
शायद वो इस तरफ़ दो कदम चला है
आँखों में मस्ती है चेहरा गुलाबी सा है
मुझे यार का ख़त मुद्दतो बाद मिला है.
किस आफत में मेरी जान फंस गई है
चाहत में मेरा हर एक लम्हा गुजरता है
ओ मेरे महबूब निगाहें न फेरना मुझ से
हर खुशी है इस सूने हयात में गर तू है.
9 टिप्पणियां:
आख़िरी शे'र, बहुत उम्दा
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सुंदर और प्यारी रचना के लिए बधाई
- किसलय
mahendra bhai,
ye sher bhee aapke andaaj mein alag se lage, bilkul khaas, maja aa gaya, aur haan khat to dekhe ab hamein bhee jamaanee beet gaya hai.
आ रिया है, आ रिया है खुशी लेके. बढ़िया. आभार.
mishra ji bahot khub likha hai aapne bahot sundar..
बढिया रचना । बधाई
क्या बात है, मजा आ गया सुंदर कविता पढ कर.
राम राम जी की
बहुत उम्दा
बहुत सुंदर - पहला पद बहुत अच्छा लगा.
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