6.2.09

तेरी मौजूदगी का सदा मुझे अहसास सदा रहता है

तेरी मौजूदगी का सदा मुझे अहसास सदा रहता है
तेरी सूरत अक्सर अपनी बंद आँखों से देख लेता हूँ.

जिसे तेरा चेहरा समझ कर मै रात भर चूमता रहा
नींद से जागा जब मै सिरहाना अपनी बाहों में पाया.

तेरी सूरत देखकर रुकते नही मेरे ये बेहिसाब आंसू
तेरे ख्याल देते थे खुशी दर खुशी वो समय और था.

मेरी आँखों के सामने से अब तुम दूर नही होना जी
मेरी दिल ऐ दिलरुबा का श्रृंगार होना अभी बाकी है.

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9 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

क्या बात है, मिश्रा जी. बहुत सही.

राज भाटिय़ा ने कहा…

वाह वाह मिश्रा जी बहुत खुब .
धन्यवाद

अजय कुमार झा ने कहा…

mahendra bhai, andejaa bayan aur shailee pasand aayee, hamesha kee tarah.

"अर्श" ने कहा…

मिश्रा जी एक बात तो माननी पड़ेगी के आपके लेखनी में एक अजीब सी मासूमियत होती है .. बहोत खूब लिखा है आपने ढेरो बधाई आपको...


अर्श

Anil ने कहा…

badiya likha hai mishra ji.....
badhai ho

ise bhi dekhen
http://www.aajkapahad.blogspot.com/

Vinay ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति, अरे साहब अपने जिस ताज़ पोस्ट पर टिप्पणी दी थी वह ग़लती से साफ़ हो गयी, फिर से पोस्ट की है! यूँ न समझियेगा कि आपकी टिप्पणी हटा दी, दिल करे तो फिर टिपिया लीजिए!

admin ने कहा…

रूमानी एहसासों को जगाने में सक्षम है आपकी गजल। बधाई।

vandana gupta ने कहा…

bahut sundar rachna..........har sher bahut badhiya

राजीव करूणानिधि ने कहा…

बहुत बढ़िया...आभार..