जब हिंदी में कुछ सार्थक लेखन नहीं किया जावेगा तबतक हमारी हिंदी भाषा स्तर पर सम्मानजनक स्थान प्राप्त नहीं कर सकेगी यह कटु सत्य है यह प्रश्नचिह्न हमारे सामने खडा हो गया है . हिंदी भाषा को नेट पर सारी दुनिया में पढ़ा जाता है यदि अमर्यादित पोस्टो और टीपो को बाहर के लोग पढेगें तो उसका अच्छा प्रभाव नहीं पड़ेगा भाई समीर लाल जी ने अपने ब्लॉग उड़नतश्तरी में सार्थक शब्द का प्रयोग अपनी पोस्ट में कर कुछ संकेत तो दे दिए है . ब्लॉग जगत के कलमकारों को इस और गंभीरता से विचार करना चाहिए कि अच्छा लिखे और अच्छे विचार ब्लॉग के माध्यम से पाठको को उपलब्ध कराये .
* माननीय सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के द्वारा "अमर्यादित टीप पोस्ट देने वाले ब्लागर्स को न्यायालयीन कार्यवाही का सामना करना पड़ सकता है" संकेत दिए गए है सराहनीय है जोकि ब्लागजगत के लिए आगे शुभकारी होंगे और कम से लोग कमेंट्स पोस्ट देते समय मर्यादित भाषा का प्रयोग करेंगे. ....... ये तो हो गई मेरे दिल की बात.
उपरोक्त खरी खोटी लिखने के बाद यह कविता " फिर इसमें मेरा दोष कहाँ है " प्रस्तुत कर रहा हूँ .बचपन के दौरान मेरे पिता यह कविता मुझे हमेशा सुनाया करते थे.
फिर इसमें मेरा दोष कहाँ है ?
अधर तुम्हारे हाथ तुम्हारे
बंसुरिया भी साथ तुम्हारे
इस पर दर्द गीत गाओ तो
फिर इसमें मेरा दोष कहाँ है .
तुम चाहो तो अपने स्वर से
द्वार द्वार दिवाली कर दो
मरुस्थल की सूनी झोली में
उपवन की हरियाली भर दो
बिजली की हर छठा तुम्हारी
अम्बर की हर घटा तुम्हारी
इस पर यदि चातक दे गाली
फिर इसमें मेरा दोष कहाँ है
तुम चाहो धूमिल संध्या को
चाँदनी से बोर बोर कर दो
हर सागर की गहन उदासी
मधुचंदा बन तुम हिलोर दो
द्रश्य तुम्हारे नैन तुम्हारे
मधुवन में तुम पतझड़ ढूढो
फिर इसमें मेरा दोष कहाँ है
बगिया के फूलो को पतझड़
के घर गिरवी मत रख देना
काली रजनी में कम से कम
झिलमिल सा दीपक रख देना
जीवन की हर ज्योति तुम्हारी
मेहनत की हर सीक तुम्हारी
इस पर अंधियारों में तुम बैठे
फिर इसमें मेरा दोष कहाँ है
अधर तुम्हारे हाथ तुम्हारे
बंसुरिया भी साथ तुम्हारे
इस पर दर्द गीत गाओ तो
फिर इसमें मेरा दोष कहाँ है .
तुम चाहो तो अपने स्वर से
द्वार द्वार दिवाली कर दो
मरुस्थल की सूनी झोली में
उपवन की हरियाली भर दो
बिजली की हर छठा तुम्हारी
अम्बर की हर घटा तुम्हारी
इस पर यदि चातक दे गाली
फिर इसमें मेरा दोष कहाँ है
तुम चाहो धूमिल संध्या को
चाँदनी से बोर बोर कर दो
हर सागर की गहन उदासी
मधुचंदा बन तुम हिलोर दो
द्रश्य तुम्हारे नैन तुम्हारे
मधुवन में तुम पतझड़ ढूढो
फिर इसमें मेरा दोष कहाँ है
बगिया के फूलो को पतझड़
के घर गिरवी मत रख देना
काली रजनी में कम से कम
झिलमिल सा दीपक रख देना
जीवन की हर ज्योति तुम्हारी
मेहनत की हर सीक तुम्हारी
इस पर अंधियारों में तुम बैठे
फिर इसमें मेरा दोष कहाँ है
15 टिप्पणियां:
बेशक शब्द सख्त हों परंतु भाषा का स्तर बना रहना चाहिए। कविता प्रभावित करती है।
सुन्दर गीत के लिए ढेरों साधुवाद
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चाँद, बादल और शाम
bahut sundahr kavita...
padhke bahot hi sukhad anubhuti hui.... dhero badhai aur sadhuwad sahab....
arsh
सुन्दर कविता. आभार.
mahender bhai, bilkul sahee kaha aapne, kavita behad bhaavpurn lagee. aur haan us mudde par jab mujhse bhee bardaasht nahin hua to maine bhee ek bheegaa hua vyangya likh mara, magar afsos to ye hai ki ye sab mahilaa swatantra ke naam par hua hai.
महेंद्र जी यूँ दुखी हो कर लेखन से विमुख ना हो जाया करें...अब ब्लॉग परिवार है किसी से कभी कुछ उंच नीच हो भी जाये तो उसे क्षमा कर दिया जाना चाहिए...मैं आप की बात से सहमत हूँ की ब्लॉग की भाषा मर्यादित होनी चाहिए लेकिन इस बात से नाराज़ हो कर लेखन से विमुख होने वाली बात से सहमत नहीं...
आप के पिता श्री द्वारा सुनाई कविता बार बार पढ़ रहा हूँ और गद गद हो रहा हूँ...कमाल की कविता है ...धन्यवाद उसे प्रस्तुत करने के लिए..
नीरज
हमारे शब्दों से हमारी छवि भी तो बनती बिगड़ती है कम से कम यह ख़याल तो रखना चाहिए। सुंदर कविता।
" हमारे शब्दों से हमारी छवि भी तो बनती बिगड़ती है" शिखा जी आपकी टीप से मै शतप्रतिशत सहमत हूँ . अच्छा लेखन व्यक्ति के व्यक्तित्व और कृतित्व की पहचान भी कराता है . आभार.
तुम चाहो तो अपने स्वर से
द्वार द्वार दिवाली कर दो
मरुस्थल की सूनी झोली में
उपवन की हरियाली भर दो
बहुत ही सुन्दर गीत रचना...........
कविता और आपकी पीडा यद्यपि अपनी-अपनी जगह किन्तु दोनों में सुन्दर तादात्म्य साध कर व्यंजना में आपने अपनी बात कह दी।
बहुत सुंदर कविता लिख दी ... दोष भी किया नहीं जाता ... हो जाता है।
महेन्दर जी आप ने सही लिखा, कभी कभी लगता है कि कमेंट्स बॉक्स में माडरेट लगना ही चाहिये,
बाकी आप की कवित बहुत सुंदर लगी धन्यवाद
sahmat
महेन्द्र जी हम जैसा देखते हैं, जैसी चीजें पढते हैं, हमारा मन भी वैसा ही हो जाता है। इसलिए अच्छी देखें, अच्छा पढें और अच्छे अच्छे कमेण्ट करें, तो आपका मन भी अच्छा रहेगा।
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