23.3.09

कागज़ के फूल भीनी खुशबू दे नहीं सकते है

कागज़ के फूल भीनी खुशबू दे नहीं सकते है
बनावटी चाहत सच्चा प्यार दे नहीं सकती है.

उनको कोशिशे कर हम.... भुलाए जा रहे है
भुलाने की चाह में वे अब और याद आ रहे है.

जिसको हीरा समझ.. दिल से तराशना चाहा
देखिये तकदीर उसकी वह पत्थर निकल गया.

6 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

achhi rachna.....

अनिल कान्त ने कहा…

ye bhi khoob rahi ...dil ka khayal

संगीता पुरी ने कहा…

सुंदर रचना ... बहुत अच्‍छी लगी।

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत ही सुंदर
धन्यवाद

seema gupta ने कहा…

" sundr bhav or shabd"

Regards

Science Bloggers Association ने कहा…

जिंदगी के करीब ले जाती रचना।