20.4.09

स्वर्ग लोक इस धरती पर है ऊपर या और अन्यत्र नहीं

स्वर्ग लोक इस धरती पर है ऊपर या और अन्यत्र नहीं
उसको तुम यही तलाश करो.. जाओ न ढूँढने और कहीं.

तुम अपने पुरुषार्थ प्रयत्नों से कर दो उसका निर्माण यहाँ
यह आशा का सन्देश तुम्हे इस भू मंडल पर फैलाना है.

चिंताएँ तजकर लाभ- हानि सब में प्रसन्न रहना सीखो
दुःख व्यथा विघ्न बाधा संकट सबको हँसकर सहना सीखो.

ईर्षा ,द्वेष को छोड़ कर प्रेम की धारा में तुम बहना सीखो
रोने - धोने को छोड़ सदा तुम मधुर संगीत गाना सीखो।
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9 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

ईर्षा ,द्वेष को छोड़ कर प्रेम की धारा में तुम बहना सीखो
रोने - धोने को छोड़ सदा तुम मधुर संगीत गाना सीखो.
......... बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति,मन का सुकून...

संगीता पुरी ने कहा…

सचमुच स्‍वर्ग लोक यहीं है ... इधर उधर नहीं ... प्रेम की धारा में हम बहना तो सीखें।

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

sundar rachna ki prastuti ke liye aabhaar.
- vijay

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढि़या बात कही, मिश्रा जी.

Arvind Mishra ने कहा…

यूटोपिया !

बेनामी ने कहा…

वाह! सुंदर भाव

हें प्रभु यह तेरापंथ ने कहा…

मान गऐ मिस्राजी आपको और आपकी सुन्दर सरचना को

ज्योत्स्ना पाण्डेय ने कहा…

सुन्दर विचारों को व्यक्त करती आपकी अभिव्यक्ति भी सुन्दर है ......
शुभकामनाएं ............

रवीन्द्र प्रभात ने कहा…

बहुत बढि़या भाव,सुन्दर अभिव्यक्ति...शुभकामनाएं!