नेता
चुनाव दर चुनावों के बाद अक्सर नेता कुर्सी की गंध लेकर दिनोदिन मालामाल होता जाता है अक्सर ऐसा हो रहा है .
महगाई
चुनावों से पहले और चुनावों के बाद महंगाई दिनोदिन बढ़ती जाती है पर बढ़ती मंहगाई को रोकने हेतु चुनाव लड़ रहे नेता या चुनावों के बाद कुर्सी की गंध प्राप्त करने वाले नेता मंहगाई घटाने की चर्चा ही नहीं करते है क्या किसी को उपकृत करते है ? ऐसा क्यों होता है यह समझ से परे है अक्सर ऐसा हो रहा है .
गरीब और गरीबी
चुनावों के बाद बड़ी बड़ी बाते की जाने के बाद गरीब और गरीब होता जा रहा है और नेताओं के आश्वासन और मंहगाई के तले और दिनोदिन दम तोड़ता जा रहा है और गरीब होता जा रहा है अक्सर ऐसा हो रहा है.
नेताओं के हारने और जीतने पर समीक्षा की जाती है और बढ़ती मंहगाई और मंहगाई के तले दम तोड़ती गरीबी और चुनावों पूर्व दिए गाये वादों की समीक्षा नहीं की जाती है इसे जनमानस का दुर्भाग्य कहा जाये तो कोई बड़ी बात नहीं है . अक्सर ऐसा हो रहा है .
8 टिप्पणियां:
AKSAR (ya kahen ki HAR BAAR) AISA HI KYON HOTA HAI?
महंगाई और गरीबी की चिन्ता नेताओं को क्यो होगी उन्हें चिन्ता है अपनी कुर्सी की।
aapne bilkul sahi kaha hai
main bhi yahi baat soch raha tha
समीक्षा उसकी की जाये जिसका ये नेता हल चाहते हों वरना तो करके भी क्या होगा?
सही प्रश्न है.
सही कह रहे हैं आप । समीक्षा कौन करेगा ? वह तो चुनाव जीत गये । अगली बार फिर समीक्षा करने का वायदा कर वोट माँगने आयेंगे ।
हिमाशु जी
आपके विचारो से पूरी तरह सहमत हूँ . यही हो रहा है.
चलिये, पांच साल बाद आप फिर यही पोस्ट हू-ब-हू पेश कर सकते हैं।
अक्सर नहीं भई, हमेशा ऐसा ही होता है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
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