हमें गुलो के आलम को देखकर वो महबूब याद आता है
हमें जलते सूरज को देख कर उनका गुरुर याद आता है
मुझ से शिकवा न कर जुदा होने की हसरत तूने की थी
मुझ पर इल्जाम न लगा मेरी वफ़ा से शिकायत तुझे थी.
जब तेरे दिल में किसी के लिए कोई वफ़ा का नाम नहीं है
इस दिल को ठुकरा कर तू वफ़ा पाने की उम्मीद न कर
वो नशा जो इस जाम में नहीं है वो नशा तेरी सूरत में है
जो प्यार मेरे इस दिल में है वो प्यार सारे जहाँ में नहीं है
16 टिप्पणियां:
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति..........
बहुत शानदार पंडितजी.
रामराम.
मिश्रा जी सभी शेर बहुत सुंदर
धन्यवाद
बहुत सुंदर शेर!
हमें गुलो के आलम को देखकर वो महबूब याद आता है
हमें जलते सूरज को देख कर उनका गुरुर याद आता है
शेर सुन्दर हैं.
हमें जलते सूरज को देख कर उनका गुरुर याद आता है
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बहुत खूबसूरत
अच्छी रचना।
आजकल ज्यादा बिजी लगते हैं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बेहतरीन!!
जो प्यार मेरे इस दिल में है वो प्यार सारे जहाँ में नहीं है
बहुत सही कह रहे हैं आप!
मिश्र जी आप मेरे ब्लॉग 'कुछ लम्हे दिल के' पर पधारे आपका बहुत आभारी हूँ ...मैं अभी ब्लॉग की दुनिया में नई-नई हूँ, आप से मार्ग दर्शन की उम्मीद रखती हूँ...आपकी सभी रचनाओं से कुछ न कुछ सीखने को मिलता है...धन्यवाद
जब तेरे दिल में किसी के लिए कोई वफ़ा का नाम नहीं है
इस दिल को ठुकरा कर तू वफ़ा पाने की उम्मीद न कर
khoobsoorat.
पण्डितजी हमें लगता है आप अपने इस दोस्त की ही नज़र लगवा बैठेंगे इतने सुन्दर शेर कहकर । हा हा । वफ़ा पर सब कुछ क्या ही ख़ूब कहा !
वो नशा जो इस जाम में नहीं है वो नशा तेरी सूरत में है
जो प्यार मेरे इस दिल में है वो प्यार सारे जहाँ में नहीं है
mishra ji ,
bal e dil aisi uchhali boundary par ho gayi. bahut hi sundar!!!!
वजा फ़रमाया !
'जो प्यार मेरे इस दिल में है वो प्यार सारे जहाँ में नहीं है'
- जरूरत है दिल में छुपे इस प्यार को पूरे जहां में लुटाने की.
बहुत शानदार
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