5.10.09

जबसे ये कलम उठाई है लफ्ज ही नहीं मिलते है

जबसे ये कलम उठाई है लफ्ज ही नहीं मिलते है
जिन्हें कागजो में ढूँढा.. वो शख्स नहीं मिलते है.

वो जमाने की तलाश तो....खूब करते फिरते है
पर इस जान के लिए..उन्हें वक्त नहीं मिलता है.

नजरे खूब मिलती है...पर नजारे नहीं मिलते है
कभी बेसहारों को.. तो कही सहारे नहीं मिलते है.

जिन्दगी एक नदी की तरह है..बस तैरते जाना है
डूबते को नदी में तिनके का सहारा नहीं मिलता है.

15 टिप्‍पणियां:

दर्पण साह ने कहा…

जबसे ये कलम उठाई है लफ्ज ही नहीं मिलते है
जिन्हें कागजो में ढूँढा.. वो शख्स नहीं मिलते है.

sabse behterin she'r

der tak aah wah karte rahe !!

mehek ने कहा…

waah bahut khub

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

Mishra ji,
khoobsurat rachna aapki..naya nadaaz..acche alfaaz..
जबसे ये कलम उठाई है लफ्ज ही नहीं मिलते है
जिन्हें कागजो में ढूँढा.. वो शख्स नहीं मिलते है.
galat jagah par dhoondh rahe hain na aap...kagaz mein kaun milega bhala ?

जिन्दगी एक नदी की तरह है..बस तैरते जाना है
डूबते को नदी में तिनके का सहारा नहीं मिलता है.
abhi to aap tair rahein hain jab doobne lagenge to wo aajaayenge ..ghabraaiye mat..
bahut acchi abhivyakti..

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

आज शान में थोड़ी गुस्ताखी कर रहा हूँ, बुरा न मानिएगा। वैसे तो छंद विधा में मेरा दखल नहीं है। फिर भी आप की चार पंक्तियों को अपने अंदाज में पेश कर रहा हूँ ....

वो जमाने की तलाश तो....खूब करते फिरते है
पर इस जान के लिए..उन्हें लमहे नहीं मिलते है.

जिन्दगी एक नदी की तरह है..बस तैरते जाना है
डूबते को नदी में तिनकों के सहारे नहीं मिलते हैं.

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

आदरणीय दिनेशराय द्विवेदी जी
आपने तो रचना में चार चाँद लगा दिए . मुझे भी कोई विशेष ज्ञान नहीं है पर लिखने की कोशिश करता रहता हूँ . आभार. शुक्रिया

Mithilesh dubey ने कहा…

क्या बात है बेहद खूबसूरत रचना।

Vipin Behari Goyal ने कहा…

बहुत बढ़िया

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत बढिया रचना.

रामराम.

राज भाटिय़ा ने कहा…

वाह वाह जी बहुत सुंदर,
धन्यवाद

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

महेंद्र भाई
आपकी अभिव्यक्ति ने कमाल कर दिया .
क्या लिख है वाह .....

"जिन्दगी एक नदी की तरह है..बस तैरते जाना है"
- विजय

Udan Tashtari ने कहा…

जबसे ये कलम उठाई है लफ्ज ही नहीं मिलते है
जिन्हें कागजो में ढूँढा.. वो शख्स नहीं मिलते है.


--बहुत सही!! मजा आ गया.

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

जिन्दगी एक नदी की तरह है..बस तैरते जाना है
डूबते को नदी में तिनके का सहारा नहीं मिलता है.

कितनी अच्छी बातें कही आपने...बढ़िया ग़ज़ल..धन्यवाद!!

दीपक 'मशाल' ने कहा…

kya khoob kaha hai.

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

ytarth , saty kah diya aapne

Naveen Tyagi ने कहा…

जबसे ये कलम उठाई है लफ्ज ही नहीं मिलते है
जिन्हें कागजो में ढूँढा.. वो शख्स नहीं मिलते है.
bahut khoob