महफ़िल सितारों की देखकर प्यार के महफ़िल की याद आती है
फलक में उस चाँद को देखकर महबूबा की दिल से याद आती है.
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अपनी वफ़ा को सीने में लगाकर हम यह ठिकाना छोड़ चले है
न मंजिल की ख़बर और न राहो की ख़बर फ़िर भी मुसाफिर है.
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अपने गेसुओ के साए में गुलो की छाँव को दिल से बनाए रखना
अमानत दी है मैंने तुझे तुम अपने दिल में दिल से संजोये रखना.
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महेंद्र "निरंतर"
20 टिप्पणियां:
apne gaisuuon------bahut khoobsoorat bhav hain bdhaai
'अपनी वफ़ा को सीने में लगाकर हम यह ठिकाना छोड़ चले है
न मंजिल की ख़बर और न राहो की ख़बर फ़िर भी मुसाफिर है.'
-बेखबर होने के बजाय बाखबर होंगे तो मुसाफिरी आसान हो जायेगी.
अपने गेसुओ के साए में गुलो की छाँव को दिल से बनाए रखना
अमानत दी है मैंने तुझे तुम अपने दिल में दिल से संजोये रखना.
subha ka pahala kadam ban kar
अपने गेसुओ के साए में...... महेंद्र मिश्रा जी आप की कलम दिन पर दिन निखरती जा रही है, बहुत सुंदर लगे आप के यह शेर.
धन्यवाद
राज जी
आपका आशीर्वाद और अभिव्यक्ति ही अच्छे लेखन हेतु अभ्प्रेरित करती है . उत्साहवर्धन करने के लिए आभार.
tino ke tino she'r bahot hi khubsarat hai bahot bahot badhai mishara ji aapko......
arhs
अपनी वफ़ा को सीने में लगाकर हम यह ठिकाना छोड़ चले है...बहुत खूब ....अच्छी लगी
अपने गेसुओ के साए में गुलो की छाँव को दिल से बनाए रखना
अमानत दी है मैंने तुझे तुम अपने दिल में दिल से संजोये रखना.
bhaut hi kamaal kaha hai bhiyaa aapne
अपनी वफ़ा को सीने में लगाकर हम यह ठिकाना छोड़ चले है
न मंजिल की ख़बर और न राहो की ख़बर फ़िर भी मुसाफिर है.
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is gazal ko sur aur swar mil jayr to iski khoobsarti badh jayegi
महेंद्र भाई
आपने अच्छा प्रयास किया है
लिखते रहें
-विजय
अरे महेन्दर जी आप की जगह यह किस जवान ओर खुबसुरत नोजवान की फ़ोटू कोई चिपका गया???.....:)
महेन्दर जी भाई काला टीका लगा लो कान के पीछे, भगवान बुरी नजर से बचाये
"न मंजिल की ख़बर और न राहो की ख़बर फ़िर भी मुसाफिर है.’
मुसाफ़िर हूं यारों, न घर है ना ठिकाना, (पर)
मुझे चलते जाना है, बस चलते जाना.
सुन्दर रचना.
अरे गज़ब!! ये फोटू हुई न कुछ...अब मैच खा रही है कविताओं से. वाह!!
सुंदर भाव. साथ ही जबलपुर को सलाम.
बहुत ही शानदार प्रस्तुति पण्डितजी, आनन्द आ गया शेरों में ।
फलक मे उस चाँद को देखकर महबूबा कई दिल से याद आती है...... " सुंदर मुखड़े या फ़िर महबूबा की तुलना हमेशा चाँद से की जाती है....और इससे बहतर उपमा कोई हो भी नही सकती...बहुत शानदार प्रस्तुती.."
Regards
बहुत बढ़िया कहा आपने
लाजवाब।
आप बहुत अच्छा लिखते हैं मेरे लेख इदं न मम पर टिप्पणी के लिए धन्यवाद.
बहुत प्यारे शेर है, बधाई।
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