18.1.09

अपने गेसुओ के साए में गुलो की छाँव को दिल से बनाए रखना



महफ़िल सितारों की देखकर प्यार के महफ़िल की याद आती है
फलक में उस चाँद को देखकर महबूबा की दिल से याद आती है.

*

अपनी वफ़ा को सीने में लगाकर हम यह ठिकाना छोड़ चले है
न मंजिल की ख़बर और न राहो की ख़बर फ़िर भी मुसाफिर है.

*

अपने गेसुओ के साए में गुलो की छाँव को दिल से बनाए रखना
अमानत दी है मैंने तुझे तुम अपने दिल में दिल से संजोये रखना.

*

महेंद्र "निरंतर"

20 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

apne gaisuuon------bahut khoobsoorat bhav hain bdhaai

hem pandey ने कहा…

'अपनी वफ़ा को सीने में लगाकर हम यह ठिकाना छोड़ चले है
न मंजिल की ख़बर और न राहो की ख़बर फ़िर भी मुसाफिर है.'

-बेखबर होने के बजाय बाखबर होंगे तो मुसाफिरी आसान हो जायेगी.

MANVINDER BHIMBER ने कहा…

अपने गेसुओ के साए में गुलो की छाँव को दिल से बनाए रखना
अमानत दी है मैंने तुझे तुम अपने दिल में दिल से संजोये रखना.

subha ka pahala kadam ban kar

राज भाटिय़ा ने कहा…

अपने गेसुओ के साए में...... महेंद्र मिश्रा जी आप की कलम दिन पर दिन निखरती जा रही है, बहुत सुंदर लगे आप के यह शेर.
धन्यवाद

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

राज जी
आपका आशीर्वाद और अभिव्यक्ति ही अच्छे लेखन हेतु अभ्प्रेरित करती है . उत्साहवर्धन करने के लिए आभार.

"अर्श" ने कहा…

tino ke tino she'r bahot hi khubsarat hai bahot bahot badhai mishara ji aapko......


arhs

अनिल कान्त ने कहा…

अपनी वफ़ा को सीने में लगाकर हम यह ठिकाना छोड़ चले है...बहुत खूब ....अच्छी लगी

श्रद्धा जैन ने कहा…

अपने गेसुओ के साए में गुलो की छाँव को दिल से बनाए रखना
अमानत दी है मैंने तुझे तुम अपने दिल में दिल से संजोये रखना.

bhaut hi kamaal kaha hai bhiyaa aapne

रश्मि प्रभा... ने कहा…

अपनी वफ़ा को सीने में लगाकर हम यह ठिकाना छोड़ चले है
न मंजिल की ख़बर और न राहो की ख़बर फ़िर भी मुसाफिर है.
...........
is gazal ko sur aur swar mil jayr to iski khoobsarti badh jayegi

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

महेंद्र भाई
आपने अच्छा प्रयास किया है
लिखते रहें
-विजय

राज भाटिय़ा ने कहा…

अरे महेन्दर जी आप की जगह यह किस जवान ओर खुबसुरत नोजवान की फ़ोटू कोई चिपका गया???.....:)

महेन्दर जी भाई काला टीका लगा लो कान के पीछे, भगवान बुरी नजर से बचाये

Himanshu Pandey ने कहा…

"न मंजिल की ख़बर और न राहो की ख़बर फ़िर भी मुसाफिर है.’

मुसाफ़िर हूं यारों, न घर है ना ठिकाना, (पर)
मुझे चलते जाना है, बस चलते जाना.

सुन्दर रचना.

Udan Tashtari ने कहा…

अरे गज़ब!! ये फोटू हुई न कुछ...अब मैच खा रही है कविताओं से. वाह!!

sanjay vyas ने कहा…

सुंदर भाव. साथ ही जबलपुर को सलाम.

बवाल ने कहा…

बहुत ही शानदार प्रस्तुति पण्डितजी, आनन्द आ गया शेरों में ।

seema gupta ने कहा…

फलक मे उस चाँद को देखकर महबूबा कई दिल से याद आती है...... " सुंदर मुखड़े या फ़िर महबूबा की तुलना हमेशा चाँद से की जाती है....और इससे बहतर उपमा कोई हो भी नही सकती...बहुत शानदार प्रस्तुती.."
Regards

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत बढ़िया कहा आपने

जितेन्द़ भगत ने कहा…

लाजवाब।

surendra ने कहा…

आप बहुत अच्छा लिखते हैं मेरे लेख इदं न मम पर टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

Science Bloggers Association ने कहा…

बहुत प्‍यारे शेर है, बधाई।