तेरी मौजूदगी का.. सदा मुझे एहसास रहता है
बंद आँखों के आईने में तेरी सूरत देख लेता हूँ.
जरा अपने इस चेहरे से जरा नकाब हटा दे यारा
जरा देखें तेरे चेहरे पे क्या क़यामत बरस रही है.
जब भी तू आइने में अपना चेहरा देखती होगी
आइना अक्सर तुझे मेरा चेहरा दिखलाता होगा.
जो चेहरा मैंने अपने ख्यालो में दिल से देखा था
जब रूबरू हुए तो वह चेहरा दिल से उतर गया.
इतना बेइंतिहा प्यार इस चेहरे से न तू न कर
सारी उम्र फ़िर जिया न जाए और न मरा जाए.
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चिठ्ठा चर्चा "समयचक्र" में
9 टिप्पणियां:
वाह महेन्द्र जी क्या लिखा है, ग़ज़ब।
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गुलाबी कोंपलें
सरकारी नौकरियाँ
जीने मरने पर बात आ गई..वाह!!
तेरी मौजूदगी का.. सदा मुझे एहसास रहता है
बंद आँखों के आईने में तेरी सूरत देख लेता हूँ.
जरा अपने इस चेहरे से जरा नकाब हटा दे यारा
जरा देखें तेरे चेहरे पे क्या क़यामत बरस रही है.
क्या ग़ज़ब है,
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सरकारी नौकरियाँ
waah waah
सुन्दर लिखा जी।
अजी वाह क्या लिखा है मजा आ गया, बहुत सुंदर
निरंतर जी,
क्या कल्पना संजोकर लिखी है आपने यह ग़ज़ल. बहुत खूब!
mahendra ji
kya khoob likha hai ye gazal , wah ji wah
maza aa gaya padhkar
aapko shivraatri ki shubkaamnaayen ..
Maine bhi kuch likha hai @ www.poemsofvijay.blogspot.com par, pls padhiyenga aur apne comments ke dwara utsaah badhayen..
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