कोई लकीर न मिली कभी हमें खुशनसीबी की
खुद अपना हाथ हमने कई बार गौर से देखा है..
मै अक्सर तन्हाइओ में जाकर तुझे खोजता हूँ
कही मेरे हाथो की लकीरों में नाम तेरा होगा..
गर देखना है तेरा मुक़द्दर दहलीज के बाहर आ
तू खुद देख तकदीर खुले आसमाँ तले बसती है..
वो किस तरह कैसे मै क्या कहूं और क्या लिखूं
मेरी तकदीर न जाने कैसे कैसे खेल खेल गई है..
अजीज दोस्त भी नहीं रहते है तकदीर के भरोसे
खुद की तकदीर अपने हाथो ही बनाना पड़ती है..
गर आदमी की तकदीर आदमी के हाथो में होती
हर आदमी खुद को खुदा कहलवाना पसंद करता..
खुद अपना हाथ हमने कई बार गौर से देखा है..
मै अक्सर तन्हाइओ में जाकर तुझे खोजता हूँ
कही मेरे हाथो की लकीरों में नाम तेरा होगा..
गर देखना है तेरा मुक़द्दर दहलीज के बाहर आ
तू खुद देख तकदीर खुले आसमाँ तले बसती है..
वो किस तरह कैसे मै क्या कहूं और क्या लिखूं
मेरी तकदीर न जाने कैसे कैसे खेल खेल गई है..
अजीज दोस्त भी नहीं रहते है तकदीर के भरोसे
खुद की तकदीर अपने हाथो ही बनाना पड़ती है..
गर आदमी की तकदीर आदमी के हाथो में होती
हर आदमी खुद को खुदा कहलवाना पसंद करता..
14 टिप्पणियां:
bahut sahi,sundar rachana,khas kar akhari 4 lines lajawab
अजीज दोस्त भी नहीं रहते है तकदीर के भरोसे
खुद की तकदीर अपने हाथो ही बनाना पड़ती है..
बहुत सुदर ... एक ज्योतिषी होने के बावजूद मै भी यही मानती हूं...शायद आपको भी यही पक्तियां अधिक अच्छी लगी ... तभी तो अपने शीर्षक में यही डाल रखा है।
साहब आपने तो बहुत कुछ कह दिया चन्द शब्दों में .... बहुत अच्छी रचना
अजीज दोस्त भी नहीं रहते है तकदीर के भरोसे
खुद की तकदीर अपने हाथो ही बनाना पड़ती है..
गर आदमी की तकदीर आदमी के हाथो में होती
हर आदमी खुद को खुदा कहलवाना पसंद करता..
बहुत बढ़िया लिखा है।
bahut sundar rachna hai aapki. mujhe isi se milta hua ik sher yad aa raha hai.
apne hatho ki lakeero ko gor se dekha hai faraz
kaise nikal jate hain lakeero se lakeero me rahne wale.
agar kabhi waqt mil jae to mera blog b dekhen.
aapki nazm bahut achhi hai janab. aapse aik guzarish hai meri agar aapne kuchh prerna se bhara likha ho to mere blog ke lie bhej den. aur han aik bar blog zaroor dekhen. shukriya
मै अक्सर तन्हाइओ में जाकर तुझे खोजता हूँ
कही मेरे हाथो की लकीरों में नाम तेरा होगा..
गर देखना है तेरा मुक़द्दर दहलीज के बाहर आ
तू खुद देख तकदीर खुले आसमाँ तले बसती है..
अजीज दोस्त भी नहीं रहते है तकदीर के भरोसे
खुद की तकदीर अपने हाथो ही बनाना पड़ती है..
अच्छे शेर कहे हैं, बधाई।
bahut khoobsoorat sher aur har sher mein ek sandesh.........waah!
sach kaha hai aapne hathon ki lakeeron mein kya rakha hai ,taqdeerein banani padti hain.
तकदीर का फसाना है फिल्मी गीत आप जरूर सुने होगे । हाथो की लकीर के बारे में तमाम किस्से और ऐतिहासिक कहानिया पढ़ी है जो नेपोलियन बोनापाटॆ तक की है । इसलिए हाथ की लकीर की औऱ से किसी तरह भ्रमित नही हूं आपने तो सच ही कहा है कि हाथो की लकीर अगर सच बोलने लगे तो आदमी फिर खुदा से बढ़कर हो जाए । मै तो यह जानता हू कि हाथ की लकीर खुद बनती है औऱ बिगड़ती है धन्यवाद
गर आदमी की तकदीर आदमी के हाथो में होती
हर आदमी खुद को खुदा कहलवाना पसंद करता..
महेन्दर जी बहुत ही खुब .
धन्यवाद
शीर्षक कैच करता है और पोस्ट भी!
waah! bahut hi sundar gazal..
'khud ki takdeer banani padati hai....'
bahut khuub!
गर देखना है तेरा मुक़द्दर दहलीज के बाहर आ
तू खुद देख तकदीर खुले आसमाँ तले बसती है..
अच्छी लगी कविता आपकी.
कोई लकीर न मिली कभी हमें खुशनसीबी की
खुद अपना हाथ हमने कई बार गौर से देखा है..
mishra ji,
bahut khoob. meri shubhkaamnaye
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