16.9.08

राष्ट्रहित में अपने उत्तरदायित्वो का निर्वहन ईमानदारी से करे

हमारे देश को आजाद हुए ६१ वर्ष पूर्ण हो चुके है और हमारा देश एक परिपक्व राष्ट्र की श्रेणी में समग्र विश्व के समक्ष अब शान से खड़ा है . हमारे देश ने आजादी के बाद इन ६१ वर्षो में बहुत कुछ पाया है और बहुत खोया भी है . जहाँ एक और भौतिक सुख सुविधाओं से लबरेज समाज का चेहरा बदलने लगा है तो दूसरी और अलगाववादी सोच और आतंक के नए ताने बाने बुने जा रहे है . भाषा धर्म क्षेत्र और पहनावा की धुरी बनाकर एक ही देश के देशवासी एक दूसरे को शत्रु समझकर अपने ही घर में आग लगाने तुले हुए है और देश की सुख शान्ति के उपवन को उजाड़ने में जुटे है .

हमारा देश सम्प्रदाय और सम्प्रदायों में बंट सा गया है . आम आदमी में अब बर्दास्त करने की क्षमता लुप्त हो रही है और केवल मै और हम तक की सीमा में सारी सोच कैद सी हो गई है और इस का दुष्परिणाम यह निकला कि हमारे देश के कई प्रान्त अलगाव व हिंसा के रास्ते पर भटक गए है . आजादी के ६१ बसंत का सुख भोगने वाला हमारा देश भारत अब नैतिकता और मूल्यों के हो रहे भीषण पतझड़ को टकटकी लगाये देख रहा है .

प्रश्न यह है कि हमारा देश हम सभी पर दिलोजान से निछावर है और हम सभी को पाल पोस रहा है पर देश की चिंता किसको है यह आज के परिपेक्ष्य में ज्वलंत प्रश्न चिन्ह बन गया है . अपने राष्ट्र के प्रति निष्ठावान व समर्पित न होने का दंड क्षम्य और माफ़ी योग्य नही है अतः आज देश में चल रही विषम परिस्थिति को द्रष्टिगत रखते हुए आम नागरिक और हम सभी को अपने उतरदयित्वो का निर्वहन ईमानदारी और कर्मठता के साथ करने का संकल्प लेना चाहिए .

जय भारत माँ जय जय अखंड भारती जय हिंद.

15.9.08

आज के लतीफे : एक अनाम जी की रचना

एक ब्लॉगर ने दूसरे ब्लागर को टिप्पणी प्रेषित की तो दूसरे ब्लॉगर ने
प्रतिउत्तर में कहा कि मै मूर्ख ब्लागरो को टिप्पणी प्रेषित नही करता हूँ
पहले ब्लॉगर ने उत्तर दिया - मै तो प्रेषित करता हूँ.

......

ब्लॉगर अपनी पत्नी से - तुम मुझे हर समय फिजूल खर्च करने के ताने
मारती रहती हो कोई ऐसी बेकार की चीज बताओ जो मैंने खरीदी हो ?
पत्नी - पिछले साल एक फायर फाइटर खरीद लाये थे जो अब तक एक
बार भी काम में नही आया .

...........

नबाब साहब भी मेरे पिता के सामने सर झुकाया करते थे .
कौन थे तुम्हारे पिता ?
जी शाही हज्जाम हुजूर
...........

प्रेमिका प्रेमी से - मै तुम्हारे पत्रों की टिकटों को खूब चूमा कराती हूँ
क्योकि मै जानती हूँ की कभी उन टिकटों को तुम्हारे होठो ने
छुआ होगा
प्रेमी - वो तो सब ठीक है तनिक मेरी वेबकूफी पर भी विचार करो
उन टिकटों पर मै थूक लगाकर गीलाकर टिकटों को उन पत्रों पर
चिपकाया करता था .

.........

ब्लॉगर दंपत्ति स्टेशन पर पहुंचे कि ट्रेन छूट गई .
ब्लॉगर पति अपनी पत्नी से - तुम अगर जल्दी तैयार हो जाती तो
हमें गाड़ी मिल जाती .
ब्लॉगर पत्नी - अगर तुम जल्दीबाजी न करते तो हमें अगली ट्रेन
के लिए इतनी देर इंतजार नही करना पड़ता .

अंत कुछ और कही से एक अनाम जी की रचना जो मुझे बेहद मनपसंद है -

झुटपुटा वक्त है बहता हुआ दरिया ठहरा
सुबह से शाम हुई दिल हमारा न ठहरा.

बस एहसास है कि कोई मेरे साथ है
वरना तन्हा जीने की ख्वाहिश किसे है.

जरा सा दर्द सीने में जागा तो आंखे खुल गई
दिल में कुछ चोटे उभर आई तो आंसू आ गए.

दिल की हालत की तरफ़ किसकी नजर जाती है
इश्क की तमाम उम्र तमन्ना में गुजर जाती है .

...............

14.9.08

बढ़ती आतंकवादी घटनाये : जिम्मेदार जागरुक नागरिक की भूमिका का निर्वाह करे.

हमारे देश में दिन प्रतिदिन आतंकवादी घटनाये घटित हो रही है और हजारो बेगुनाह निरीह नागरिको को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है . कभी मुंबई में सीरियल बम ब्लास्ट तो कभी गुजरात के क्षेत्र में तो कभी देहली में हो रहे है . कल ही देहली में अचानक हुए बम ब्लास्ट में करीब ३० लोगो की मौत हो गई और १०० लोग घायल हो गए . कल दिल्ली में १५ सितम्बर को अन्तराष्ट्रीय आतंकवाद पर सेमीनार होने जा रहा है पर उसके दो दिनों पूर्व देश की नाक राजधानी देहली में ६ बम विस्फोट कर अपने नापाक इरादे जाहिर कर दिए है . इन बम विस्फोटो से सारा देश दुखी है और इस मसले पर चर्चा का दौर शुरू हो गया है कोई सुरक्षा व्यवस्था को दोष दे रहा है तो कोई दूसरा और किसी पर दोष मढ़ रहा है .

पर आपने कभी अपने बारे में सोचा कि आप देश के जिम्मेदार नागरिक होने की हैसियत से देश की सुरक्षा व्यवस्था के लिए क्या योगदान दे रहे है ?

आज मैंने एक समाचार पत्र में पढ़ा कि दिल्ली के इंडिया गेट में एक कूड़ा-करकट बीनने वाले की सजगता से सैकडो लोगो की जाने बच गई और महाराष्ट्र के रहने वाले इस युवक ने कूडेदान में से बम निकाल कर पुलिस वालो को दिया . यह प्लास्टिक बम था बाद में पुलिस वालो ने उस बम को डीफ्यूज किया और अपनी पीठ थप थ प् ली और वाहवाही लूट ली . बेचारे उन युवको की किसी ने परवाह भी नही की जिनकी वजह से सैकडो लोगो की जाने बच गई . इन युवाओ की जितनी भी सराहना की जावे कम है वे युवक सराहना के पात्र है .

मामला आतंकवाद का हो या हिंसा या किसी अपराधिक घटनाओ का हो . घटना घटित होने पर हम क्या सभी प्रशासन पर सुरक्षा व्यवस्था पर उंगली उठने लगते है और उनकी भूमिका पर सवाल खड़े करने लगते है . सुरक्षा व्यवस्था में लगे सभी लोग हमारी तरह इंसान होते है . छल कपट के कारण आतंकवादी अपराधी सुरक्षा व्यवस्था को धता बताते रहते है .

राजनीतिक परिवेश में अपराधियो को पकड़ना साधारण कार्य नही है ऐसे माहौल में चुस्त दुरस्त सुरक्षा व्यवस्था अपने सही काम को समय पर अंजाम नही दे पाती है . उपर से भ्रष्टाचार का दलदल का साम्राज्य है . जिस प्रकार हम अपने परिवार की सुरक्षा का ख्याल रखते है ठीक उसी प्रकार हमें एक जिम्मेदार नागरिक होने की हैसियत से पूरे समाज की सुरक्षा होने का भी अहसास होना चाहिए . आप भी जिम्मेदार नागरिक होने के नाते अपने आसपास नजर तो रख सकते है . मुहल्ले में बाहर कूडेदान पर भी पैनी नजर रखे कि आसपास कोई संदिग्ध वास्तु तो नही या संदिग्ध व्यक्ति तो नही घूम रहा है . आपको लगे कि कोई लावारिस वस्तु संदिग्ध अवस्था में पड़ी है तो फौरन पुलिस को सूचित करे . इस तरह सजग रहकर काफी हद तक आतंकवादियो पर अंकुश लगाया जा सकता है . विदेशो में आतंकवाद की बहुत ही कम घटनाये घटित होती है उसका मूल कारण है कि वहां के लोगो का सजग और अधिक जागरुक रहना है और उसके साथ साथ वहां की सुरक्षा व्यवस्था भी सजग जागरुक चुस्त दुरस्त है और ऐसे मामलों में राजनीतिक हस्तक्षेप भी नही होता है .

गायत्री परिवार के पूज्यदेव गुरुदेव कहा करते थे कि " जब हम सुधरेंगे तो जग सुधरेगा "

जब देश का आम आदमी देश समाज की सुरक्षा के प्रति सजग और जागरुक रहेगा तो प्रशासन भी सजग और जागरुक हो जावेगा . देश में अब समय आ गया है कि हम सुरक्षा एजेसी और अन्य व्यवस्था पर दोषारोपण करना छोड़कर आतंकवाद से निपटने के लिए समाज के सुरक्षा के लिए ख़ुद सजग हो जावे जिससे निरीह जाने जाने से बचे और अपने जिम्मेदार नागरिक होने के दायित्व का निर्वहन करे यही इन असामयिक घटनाओ में मारे गए लोगो के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी .
कल की घटना से दुखी होकर यह पोस्ट लिख रहा हूँ .

महेंद्र मिश्रा
जबलपुर.

13.9.08

आओ खुल गई है टिप्पणी कार्नर की भारी भरकम दुकान अब आपके शहर में

डुग डुग डुग डुग डुग

डुग डुग डुग डुगडुगी बज रही है और डुगडुगी बजाने वाला भारी आवाज में जोर जोर से चिल्ला कर कह रह है आओ आओ अब खुल गई "टिप्पणी कार्नर" की भारी भरकम दूकान अब आपके शहर में.

मुन्ना भी आओ मुन्नी भी आओ कालू भी आओ और लालू भी मिंटू पिंटू भी आओ और सिंटू भइया भाई आओ अब टिप्पणी के लिए अब निराश होने की जरुरत नही है अब ब्लॉगर भाई बहिन और नवब्लागर ध्यान दे कि वे पोस्ट लिखते है तो उनकी पोस्ट को टिप्पणी नही मिलती है या वे खूब दूसरो को खूब टिप्पणी देते है पर उन्हें कोई टिप्पणी नही देता है बस अब आज से कही जाने की जरुरत नही है अब आपको सब कुछ टिप्पणी कार्नर की छ त के नीचे मिल जावेगा और न कही भटकने की जरुरत है .

डुग डुग डुग डुग डुग

कभी आओ तो हमारे मशहूर "टिप्पणी कार्नर" में आये और तरह तरह की देशी विदेशी छोटी बड़ी मझौली लम्बी गोरी कारी कलूटी टिप्पणी देखे . हमारे यहाँ "टिप्पणी कार्नर" में ग्राहकों के लिए छोटे बड़े ब्लागरो की टिप्पणियो को सहेज कर फ्रिज में रखा जाता है आप यहाँ उनका स्वाद ले सकते है और यदि आपको टिप्पणी पसंद आये तो कापी कर पेस्ट कर सकते है.

डुग डुग डुग डुग डुग

हमारे टिप्पणी कार्नर में में पुरानी घटिया टिप्पणी की खरीद भी की जाती है और बदले में पुरानी टिप्पणी को नया जामा पहिनाकर ग्राहकों की खास फरमाईस पर ब्लॉग की प्लेट में परोसकर पेश की जाती है . एक टिप्पणी के बदले दो और चार टिप्पणी के बदले बहुत बड़ी टिप्पणी दी जाती है यदि आपको पुरानी पसंद आये तो आप पुरानी टिप्पणी खरीद सकते है .

हमारे यहाँ नए ब्लागरो को पुराने ब्लागरो की टिप्पणी बाक्स में से टिप्पणी हैक करने की ट्रेनिंग दी जाती है .और एक धंटे में १०० ब्लागों को जल्दी जल्दी टिप्पणी प्रेषित करने की मेगा ट्रेनिंग दी जाती है जैसे किसी ब्लॉग का टिप्पणी बाक्स खोलकर देखे फ़िर किसी की टिप्पणी की कापी कर तुंरत अपने नाम से टिप्पणी प्रेषित कर दे आदि . टिप्पणी डिजाइनिंग की ट्रेनिंग में महारत हासिल विशेषज्ञों की सेवाए चौबीसो घंटे आप प्राप्त कर सकते है . गरम टीप ठंडी टीप लिखने की विशेष ट्रेनिंग दी जाती है .

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हर साइज की टिप्पणी के रेट अलग अलग है आप अपनी जेब की अहमियत के अनुसार टिप्पणी खरीद सकते है.

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सुनो सुनो त्योहारों पर कुछ खास आफर सिर्फ़ हमारे "टिप्पणी कार्नर"में

एक टिप्पणी दो और बदले में चार टिप्पणी ले जाओ यह बम्फर मेगा छूट सिर्फ़ दिवाली तक ही है अतः जल्दी आवे और जल्दी पावे नही तो बहुत पछतायेंगे.

रिमार्क- ग्राहकों की मांग पर बम्फर मेगा छूट की सीमा बढाई जा सकती है

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व्यंग्य

बुन्देलखंडी भजन : द्विअर्थी शब्दों की भरमार से धार्मिक भावनाए आहत हो रही है ?

श्री गणेश उत्सव के पावन पर्व के साथ दशहरा,दिवाली आदि त्योहारों की झडी लग जाती है . चारो तरफ़ लाउड स्पीकर और बाक्सों से भजन कीर्तन का शोर सुनाई देता है . चारो तरफ़ तरह तरह के भजन सुनाई देते है . हर साल लाखो भजन बनाये जाते है . कोई राष्ट्रिय स्तर पर तो कोई प्रान्त स्तर पर लोकप्रियता हासिल कर लेता है . आजकल द्विअर्थी शब्दों से लबरेज भजन तैयार किए जाते है जो केवल युवा पीढी के लिए मनोरंजन बन कर रह जाते है इन गीतों,भजनों से हमारी धार्मिक भावनाए आहत होती है जैसे ....

कैसी कृपा करी गणराज पप्पू पास हो गया , तुम भंग छोड़ दो स्वामी नही तो मै मइके भाग जाऊ , ओ पप्पू के पापा ओ गणेश की मम्मी , अ र र मेरी जान है राधा इन दिनों शहर के गली कूचो में मुहल्लों में गूंज रहे है .

हर साल जबलपुर शहर में करीब ४० से अधिक एलबम लोकल विडियो लांच होते है जिनमे धार्मिक भावनाओ को आहत करने वाले शब्द फूहड़ नृत्य के काम आते है . लोकभाषा के दुरुपयोग से तैयार ये गीत.भजन भाषा भावः और भक्ति के परखच्चे उडाने में खरे उतरते है . इंसानी दिमाग में मनोरंजन चर्चित होने और व्यवसाय का भूत इसकदर हावी हो गया है कि वह अपने धार्मिक देवी देवताओं को भी भूल गया है जिसके जीते जागते प्रमाण उपरोक्त भजनों में देखे सुने जा सकते है . गणेश जी दुर्गा जी शंकर भगवान राधा-कृष्ण के नाम का उपयोग कर ये भजन गीत धार्मिक भावनाओ को लगातार आहत कर रहे है .

विद्वानों के अनुसार द्विअर्थी संवाद बुन्देली मलावी बधेली छत्तिसगढ़ी और निमाड़ी हर भाषाओ में होते है . लोकगीतों का कोई इतिहास नही है उनका किसने सृजन किया यह किसी को मालूम नही है . हर किसी को लोजगीतो और लोकभाषा का तकनीकी ज्ञान भी नही होता है पर ऐसे लोग फिजूल के शब्दों का प्रयोग कर भाषा को बरबाद कर बुन्देलखंडी भाषा के भजन का नाम देकर खूब कमाई कर रहे है .

एक साहित्यकार ने कहा शब्दों के पर्यायवाची समानार्थी और दो अर्थ होते है. जिनमे एक शब्द शुभ अर्थ वाला और दूसरा शब्द अशुभ अर्थ वाला होता है .जिनका सामाजिक महत्त्व श्लील दूसरा अश्लील होता है . बुन्देली मधुर और अच्छी भाषा है अब कलाकार या रचनाकार अशुभ शब्दों का प्रयोग करने से नही चूक रहे है जिससे लोकमंगल होने की बजाय लोक अहित होने की अधिक संभावना है ..

सुबह सुबह जब ऐसे वाहियात गाने सुनने मिलते है हर ऊंटपटांग शब्द और उल्टी सीधी तुकबंदी के साथ भगवान को जोड़कर लोग धर्म के साथ खिलवाड़ कर रहे है और लोगो की धार्मिक भावनाए आहत हो रही है . ऐसे भजन गाने बंद तो नही हो रहे है निरंतर बढ़ रहे है बस अब जरुरत है कि ऐसे गाने भजनों के मार्केट में आने के पहले कटिंग छटिंग करने के एक संस्था का गठन किया जाना चाहिए और इन गीतों भजनों की सेंसरशिप की जाना बेहद जरुरी हो गया है . ऐसे गीत भजन युवा वर्ग के संस्कारो पर विपरीत असर डाल रहे है .

जय श्री गणेश बब्बा की .

12.9.08

यारो हसरते बुलंद जीवन जीने का हौसला देती है-

तेरी चाहत के सिवा अब कोई मुझे चाहत नही
हमें तेरी मोहब्बत के आगे फ़िर कोई आरजू नही.

तुझे पाने के सारे रास्ते बंद हो गए है अपने आप
अब कोई रास्ता बचा नही है सिवाय इबादत के.

अगर दिल मिले या न मिले तड़फ रहना चाहिए
कुछ महक इस दिल की वीराने में रहना चाहिए.

जिंदगी का सफर अब सजाया संवारा जाए यारो
किसी हमसफ़र साथी को दिल से याद किया जाए.

इंतजार के बाद कभी तुम्हारा कोई पैगाम आया
यूँ मुझे लगा मानो कोई खुशियो का सैलाब आया

जब उस चमन से तुम्हारी जुल्फे लहराती निकली
मानो कोई काली घटा बल खाके निकल गई ...

यारो हसरते बुलंद जीवन जीने का हौसला देती है
यारब यदि जुदा हो जाए तो कसक रहना चाहिए.

11.9.08

माँ नर्मदा प्रसंग : संत शिरोमणि गौरीशंकर जी महाराज

संत शिरोमणि गौरीशंकर जी महाराज धूनीवाले बाबा के गुरु थे . अभी तक माँ नर्मदा के जितने भी भक्त हुए है . गौरीशंकर जी महाराज का नाम आदर से लिया जाता है . आप श्री कमल भारती के शिष्य थे जिन्होंने माँ नर्मदा की तीन बार परिक्रमा की थी . अपने गुरु के ब्रम्हलीन होने के पश्चात अपने गुरु के पदचिह्नों पर चलना अपना कर्तव्य समझकर एक बड़ी जमात इकठ्ठा कर माँ नर्मदा की परिक्रमा करने निकल पड़े . भण्डार बनाते समय यदि भंडारी यदि कह दे कि घी की कमी है तो आप तुंरत कह देते कि श्रीमान जी घी माँ नर्मदा से उधार मांग लो और एक बड़े पात्र में नर्मदा जल भरकर लाते और जैसे ही कडाही में डालते वह घी हो जाता था . जब कोई भक्त यदि घी अर्पण करने आता तो स्वामी जी आज्ञा से घी माँ नर्मदा की धार में डलवा दिया जाता था . स्वामी जी माँ नर्मदा पर अत्याधिक विश्वास करते थे और माँ नर्मदा के जल में प्रवेश नही करते थे और दूर से ही जल मंगवाकर स्नान कर लेते थे.

कहा जाता है कि एक बार आपकी जमात होशंगाबाद में भजन कीर्तन कर रही थी तो इस जमात की गतिविधियो को एक अंग्रेज कमिश्नर देख रहा था और उसके मन में संदेह हो गया की आखिर स्वामी जी इतनी बड़ी जमात को चलाते कैसे है और एक समूह को खाना कैसे खिलाते है . वह तुंरत स्वामी जी के पास पहुँचा और पुछा की इतनी बड़ी जमात को चलाने के लिए खर्च कहाँ से लाते हो तो स्वामी जी ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया कि सब माँ नर्मदा जी देती है और उनकी कृपा से हम सभी खाते पीते है . कमिश्नर ने कहा कि ठीक है मै सुबह आकर आपकी परीक्षा लूँगा और देखता हूँ ऐसा कहकर वह चला गया . सुबह वह अधिकारी स्वामी जी को बंधाधान ले गया और तट पर खड़ा होकर स्वामी जी से कहा कि आप अपनी माँ नर्मदा से ग्यारह सौ रुपयों की मांग करे हम देखना चाहते है कि तुम कहाँ तक सत्य कह रहे हो .

स्वामी जी ने माँ नर्मदा को प्रणाम किया और हाथ जोड़कर बोले कि मैंने कभी आपके जल में प्रवेश नही किया है और इन सब के कहने पर आपके जल में प्रवेश कर रहा हूँ और छपाक से माँ नर्मदा के अथाह जल में छलांग लगा दी और जल में डुबकी लगाई और सैकडो लोगो की उपस्थिति में हाथ में ग्यारह सौ रुपयों की थैली लेकर बाहर आये तो उन्होंने साहब को वह थैली थमा दी और कहा गिन लीजिये . सभी की उपस्थिति में उन रुपयों को गिना गया और ग्यारह सौ रुपये पूरे पूरे निकले तो वह अधिकारी काफी शर्मिंदा हुआ और उसने क्षमा याचना की और उसने भविष्य में किसी नर्मदा भक्त को परेशान न करने की शपथ ली और उसने खुश होकर स्वामी जी को सम्मानित किया और अनेको प्रमाण पत्र भी दिए .

एक बार ब्रम्ह मूहर्त में स्वामी जी स्नान करने जा रहे थे कि रास्ते में उन्हें कांटा लग गया वे दर्द से व्याकुल हो गए और वही बैठ गए . स्वामी जी आश्रम नही पहुंचे तो उनके शिष्य उन्हें खोजते खोजते नर्मदा तट की और गये . रास्ते में उन्हें स्वामी बैठे दिखे . शिष्यों ने स्वामी जी से कांटा निकालने को कहा पर स्वामी जी ने उन्हें मना कर दिया और कहा माँ नर्मदा ही यह कांटा निकालेंगी और उन्होंने अपने शिष्यों को आश्रम लौट जाने का आदेश दिया और वे रास्ते में उसी जगह बैठे रहे.

अपने भक्त का कष्ट माँ नर्मदा जी से देखा नही गया और वे रात्रि १२ बजे मगर पर सवार होकर वहां पहुँची और अपने भक्त गौरीशंकर से कहा कि बेटा मै तुम्हारा कांटा निकालने आ गई हूँ और उन्होंने स्वामी जी के पैर में लगा कांटा निकाल दिया और उन्हें पहले की भांति स्वस्थ कर दिया . स्वामी जी ने माँ नर्मदा से जल समाधी लेने की अनुमति मांगी तो माँ नर्मदा ने उन्हें खोकसर ग्राम में समाधी लेने की आज्ञा प्रदान की और अंतरध्यान हो गई . सुबह सुबह स्वामी जी ने इस सम्बन्ध में अपने भक्तो और शिष्यों को जानकारी दी और समाधी लेने की इच्छा व्यक्त की . एक गहरा गडडा खुदवाया गया और आठ दिनों तक भजन कीर्तन होते रहे और नौबे दिन स्वामी जी अखंड समाधी ले ली जहाँ स्वामी जी ने समाधी ली है वहां माँ नर्मदा का पवित्र मन्दिर बना है .

10.9.08

जरा हँस ले रे मनवा

जरा हँस ले रे मनवा

एक शाम को दादाजी घूमने जा रहे थे उसी समय रास्ते में एक नवयुवती
पारदर्शी साडी पहिने निकली . तो दादाजी को यह बात पची नही तो तुंरत उस
नवयुवती से बोले - देखो तुम पारदर्शी साडी पहिनो हो इसे देखकर तुम्हारी
माँ क्या कहेगी ?
नवयुवती बोली - वे इस साडी को देखकर बहुत बिगडेगी क्योकि यह उनकी साडी है मै इसे चोरी से पहिनकर आई हूँ .
......................

कालेज के जलसे में वक्ता महोदय बोल रहे थे और बीच-बीच में शैतान
लडके उन्हें रोक कर उनसे सवाल पूछ रहे थे . इन सवालों की झडी देखकर
वक्ता महोदय तुनक गए और बोले - लगता है यहाँ सभी बेवकूफ है
अच्छा होता कि यदि मुझसे सवाल एक एक कर बोलते .
तभी भीड़ में से आवाज आई - अच्छा ठीक है अब आप ही बोलिए.

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भिखारी - असल में मै एक लेखक हूँ और मैंने एक किताब लिखी है और
किताब का नाम है "पैसे कमाने के हजार तरीके "
दूसरा व्यक्ति - फ़िर तुम भीख क्यो मांग रहे हो ?
भिखारी - यह भी उनमे से एक तरीका है .

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एक मियां एक नाई के पास हजामत बनवाने के लिए पहुँचा और नाई
से बोला मेरे सारे सफ़ेद बाल क़तर डालो . नाई ने सर के सफ़ेद बाल
क़तर डाले मियां नाई से - अब मेरी दाढ़ी में कुछ सफ़ेद बाल है उन्हें चुन दो .
नाई ने मियां की बात का जबाब नही दिया और मियां की दाढ़ी के
सब बाल बना डाले और मियां की हथेली में सारे दाढ़ी के बाल रख
दिए और बोला - मेरे पास समय नही था इसीलिए दाढ़ी बनाकर
सारे बाल आपकी हथेली में रख दिए है अब आप जैसे चाहे अपने
सफ़ेद या काले बाल चुन लीजिये.

......................

9.9.08

प्यार के जाम तुम मुझे बार-बार पिलाती क्यो हो

जो हरदिल अजीज था अब वह बेगाना हो गया
वो अन्जाना हो गया नजरे फेर ली उसने हमसे.

ये तो चाहत का नसीब है अंजाम वफ़ा है यारब
अजी दिल दीवाना हो गया ये कहने लगे सभी.

मिलना नसीब था या फ़िर बिछड़ना नसीब था
पास आना नसीब था या दूर जाना नसीब था.

इस दिलकश सवाल का जबाब तुम्ही बताते जाओ
हँसना नसीब है या फ़िर दिल का सिसकना ठीक है.

तुम्हारी बेरुखी का अब तक मै जहर पी चुका हूँ
प्यार के जाम तुम मुझे बार-बार पिलाती क्यो हो.

मेरी गरीबी में मेरे हरदिल अजीज गीत बिक गए थे
उन्हें सरेआम महफिलों में अब तुम दुहराती क्यो हो.

5.9.08

माँ नर्मदा प्रसंग : भडोच में माँ नर्मदा का आगमन

महर्षि भृगु जी का आश्रम भृगुकच्छ जिसे बर्तमान में भडोच के नाम से पुकारा जाता है . कहा जाता है पूर्व में माँ नर्मदा अंकलेश्वर होकर जाती थी . स्नान करने के लिए महर्षि भृगु जी को ५० मील दूर अंकलेश्वर से नर्मदा जल लाना पड़ता था . उनके शिष्यों ने इतने दूर से जल लाने में कठिनाई का अनुभव किया . शिष्यों की समस्या का निराकरण करने के ध्येय से अपने शिष्यों को महर्षि भृगु ने बुलाया और कहा कि आप लोग मेरी लंगोटी लेकर अंकलेश्वर जाए और इसे नर्मदा जल में धोकर लगोटी को एक रस्सी में बांधकर वगैर पीछे देखे मेरे आश्रम में लाये और जब मै कहूँ तब पीछे मुड़कर देखना तो तुम्हे माँ नर्मदा का जल दिखाई देगा . यदि आप लोगो ने पीछे मुड़कर देखा तो सब काम बिगड़ जावेंगे .

अपने गुरु की आज्ञा पाकर सब शिष्य हंशी खुशी अंकलेश्वर गए और नर्मदा जल में लगोटी को धोया और लंगोटी को रस्सी में बांधकर वगैर पीछे मुड़े बिना आश्रम तक लाये और गुरु जी को आवाज दी . महर्षि भृगु जी ने अपनी कुटिया से बाहर आकर अपने शिष्यों को पीछे मुड़कर माँ नर्मदा के दर्शन करने की आज्ञा दी . जब शिष्यों ने पीछे मुड़कर देखा तो अथाह जल में लंगोटी तैरते हुए देखा तो शिष्यों की खुशी का कोई ठिकाना नही रहा . सबने सामूहिक रूप से माँ नर्मदा का पूजन अर्चन किया और माँ नर्मदा के जयकारे के जोर जोर से नारे लगाये .

जब से आजतक माँ नर्मदा भडोच से होकर ही आगे समुद्र तक जाती है .

जय नर्मदे माँ.

4.9.08

व्यंग्य : आओ दफ्तर दफ्तर खेले ....

व्यंग्य आओ दफ्तर दफ्तर खेले ....

नया वेतनमान तन्ख्याय में लग गया है और लोगो की बल्ले बल्ले हो गई . सभी केन्द्र के कर्मचारी आगामी वेतन को लेकर गुणा भाग में व्यस्त हो गए . एरिअर्स को लेकर कई घरवाली से लेकर सभी अपने अपने खर्चे के बजट बनाने में तन मन से जुट गए है . कोई घरवाली के लिए जेवर तो कई नैनो कार की फिराक में है . बाकि तो बल्ले बल्ले है पर काम करने के दो घंटे और बढ़ा दिए गए है उसी को लेकर कईओ के माथे पर पसीने की बूंदे छलकने लगी है .

जब अपने कार्यालयीन सहकर्मियो से कार्य की समयावधि बढाये जाने की चर्चा करते है तो बड़े बाबू पान की पीक थूकते हुए बोलते है कि बड्डा चिंता करने की कोई बात नही है .इससे फर्क नही पड़ता है . बस समय पर खेलते कूदते हुए कार्यालय में आओ साहब को अपना धूधना के दर्शन कराओ और नमस्ते इस तरह से करो कि साहब को तुम्हारे कार्य पर उपस्थित हो जाने का एहसास हो कि हम आ गए है .

फ़िर उसके बाद फ़िर मौजा मौजा . केटीन जाओ . कलियो की नजाकत देखो जिससे आँखों को शान्ति का शीतल एहसास हो . पहले दो धंटे केन्टीन में बैठते थे तो अब तीन घंटे बैठो . अब तुम लोग समझ गए होगे . बस अपने समय पर आ जाओ . इसी समय बड़े बाबू को साहब का बुलावा आ गया . बड़े बाबू जाते जाते बोले हाँ "जितनी देर बैठोगे उतनी जेबे भी तो गरम होगी ". कार्यालय के फर्श पर फ़िर पान की पिचकारी छोडी और हंसते हुए साहब के पास चले गए .

रिमार्क- बड़े बाबू बुरा न मानना ये तो कलम की भावना है .

महेंद्र मिश्रा जबलपुर.

माँ नर्मदा प्रसंग : श्री नंदिकेश्वर तीर्थ की कहानी

कणिका नाम की नगरी में एक ब्रामण रहता था जो वृध्धावस्था में अपने घर की जिम्मेदारी अपने पुत्र सम्वाद को सौप कर काशी चला गया और कुछ समय के पश्चात उसकी मृत्यु हो गई . थोड़े समय के बाद उसकी माँ बीमार हो गई . मृत्यु के पूर्व उसकी माँ ने अपने पुत्र संवाद से अनुरोध किया कि मृत्यु के उपरांत मेरी अस्थियाँ काशी ले जाकर गंगा में विसर्जित कर देना . अपनी माँ की अन्तिम इच्छा पूरी करने के लिए संवाद अपनी माँ की अस्थियाँ काशी ले गया और वहां वह एक पंडा के घर रुक गया . पंडा जी ने उसे गौशाला में ठहराया .

पंडा जी गाय का दूध दुह रहे थे . गाय का बछडा दूध पीने को आतुर हो रहा था . बछडा जोर से रस्सी खींचकर गाय का दूध पीने लगा इसी खीचातानी में पंडा के हाथ का दूध गिर गया और सब जगह फ़ैल गया और पंडा के पैरो में भी चोट आ गई और क्रोध में उन्होंने बछडे की खूब पिटाई की और वहां से बडबड़ा कर चल दिए . बछडे की पिटाई होती देख गाय से रहा नही गया वह जोर जोर से रोने लगी . गाय बछडे देते हुए बोली की तेरी पिटाई का बदला मै पंडा जी की पिटाई कर लूंगी .

बछडे ने अपनी माँ को समझाते हुए कहा कि माँ मेरे लिए आप बदले में पंडा को न मारे और ब्रम्ह हत्या जैसा जधन्य अपराध न करे . अपना जीवन और ख़राब और हो जावेगा . पंडा जी अपने स्वामी है आज उन्होंने मुझे मारा है कल वे मुझे प्यार भी करेंगे . हे माँ आप उन्हें क्षमा कर दें . गाय ने कहा तू ब्रम्ह हत्या कि चिता न कर माँ नर्मदा का एक तीर्थ नंदिकेश्वर ऐसा है जहाँ स्नान ध्यान आदि करने से ब्रम्ह हत्या जैसे पापो से मुक्ति मिल जाती है यह सब सुनकर बछडा चुपचाप हो गया .

शाम को जैसे ही पंडा जी गौशाला में दाखिल हुए उसी समय गाय ने रस्सी तोड़कर अपने पीने सींगो से पंडा जी पर आक्रमण कर दिया और पंडा को मार डाला और तुंरत वह काशी से नंदिकेश्वर मन्दिर की ओर भागी . यह सब सम्वाद देख सुन रहा था वह भी गाय के पीछे पीछे भागा . कुछ दिन बाद गाय ने नंदिकेश्वर तीर्थ पहुंचकर उसमे डुबकी लगाई . सबके देखते ही देखते ही उसका श्याम वर्ण शरीर पहले की तरह सफ़ेद हो गया . सम्वाद ने नंदिकेश्वर तीर्थ का महत्त्व देखकर जानकर नंदिकेश्वर तीर्थ को नतमस्तक होकर प्रणाम किया ओर जोर जोर से नंदिकेश्वर तीर्थ के जय के नारे लगाये .

हर हर महादेव नर्मदे हर

3.9.08

संकटहरण गणपति श्रोत

संकटहरण गणपति श्रोत



sabhaar- samayachakr se

ॐ गं गणपतये नमः : आज रिद्धि सिद्धि का शुभसंयोग

आज गणेश चतुर्थी और बुधवार का शुभ संयोग है . सुख सम्रद्धि शान्ति और वैभव प्राप्ति का शुभ दिन है यह महादिन सन २०१२ में आवेगा . देश के कोने कोने में आज गणपति बब्बा विराजित होने का क्रम लगातार प्रारम्भ हो गया है . गणेश जी के बारे में यह कहा जाता है कि श्री गणेश का स्मरण का कही भी आड़ी तिरछी रेखा खींच दे तो उनका चित्र आकार लेने लगता है . किसी भी कोण से गणेश महाराज पर यदि द्रष्टिपात करे तो मनभावन और अति सुंदर दिखते है इसीलिए उन्हें सौन्दर्य का देवता भी कहा जाता है और मंगलमूर्ति तो उन्हें कहा ही जाता है .

मुझे बचपन से न जाने क्यो सूढ़ वाले गजानन बब्बा से अत्यधिक लगाव था . मेरे घर में श्री गणेश जी की स्थापना नही की जाती थी पर गणेश पर्व के शुभावसर पर स्कूल से लौटते समय मै श्री गणेश की मूर्ती बाजार से खरीदकर ले आया और अपने मम्मी-पापा को वगैर बताये उनकी अनुपस्थिति में घर में श्री गणेश की मूर्ती स्थापित कर दी . जब मै अपने घर में श्री गणेश जी की आरती कर रहा था उसी दौरान मेरे मम्मी पापा घर वापिस आ गए और उन्होंने मुझे गणपति जी के सामने आरती करते देखा तो बड़े प्रसन्न हुए तब से मेरे घर में श्री गणेश "दुःखहर्ता सुखकर्ता गजानन जी मूर्ती की स्थापना मेरे घर में प्रतिवर्ष की जाने लगी है और अब श्री गणेश की मूर्ती की स्थापना प्रतिवर्ष घर में मेरा बालक कर रहा है तो मेरी खुशी का ठिकाना नही रहता कि अब श्री गणपति जी कि मूर्ती स्थापित करने के कार्य को मेरा बेटा अंजाम दे रहा है .



श्री गणेश पर्व के शुभावसर पर श्री गणेश जी की आरती प्रस्तुत कर रहा हूँ .



बिहार में आई भीषण बाढ़ - आप भी दुःखहर्ता बनने का संकल्प ले



धरती कांपती है , बिजली गिरती है तो कही तूफ़ान उठते है और आकाश गरजते है पर कुदरत की बड़ी बड़ी आपदाओ के सामने मानव ने कभी भी हार स्वीकार नही की है . आपदा विपदा के समय एक जुट होकर सभी सच्चे मन से एक दूसरे की सहायता करते है . इस समय देश में बिहार भीषण बाढ़ के प्रकोप का शिकार है और करीब ३१ लाख व्यक्ति इस भीषण बाढ़ से हलाकान है लोगो को अपनी जमीन खेती किसानी संपत्ति से हाथ धोना पड़ा है आज उनके सामने खाने पीने का संकट है और रहने को छाया नही है . मानवता और इंसानियत का तकाजा है कि बिहार वासियो की सभी राजनीति से ऊपर उठकर पुरजोर मदद करे जैसे कि हमारे देश की परम्परा है .आज गणेश चतुर्थी का पावन शुभदिन है और हम भी जरुरतमंदों की मदद करने का संकल्प ले और दुःखहर्ता बनने का संकल्प ले और बाढ़ पीडितो की चढ़ बढ़कर मदद करे . श्री गणेश आपके संकल्प को अवश्य मजबूती प्रदान करेंगे.

ॐ श्री गणेशाय नमः

सभी ब्लॉगर भाई-बहिनों को गणेश चतुर्थी पर्व के अवसर पर ढेरो शुभकामना आपका आने वाला समय सुख शान्ति और सम्रद्धि से परिपूर्ण हो .

ॐ श्री गणेशाय नमः

2.9.08

माँ नर्मदा प्रसंग : श्री शूलभेद तीर्थ

एक बार काशी नरेश चित्रसेन शिकार करने जंगल की और गए . वहां उन्होंने हिरन के झुंड को देखा . कौतुकवश उस झुंड में ऋषी उग्रतपा के लडके हिरन भेष में जंगल में विचर रहे थे . राजा ने देखा कि हिरन के झुंड चौकडी मारकर भाग रहा है तो राजा ने पीछा किया और निशाना साधकर तीर छोड़ दिया और दुर्भाग्यवश तीर ऋषी पुत्र की छाती में लग गया वो वही गिर गया . अन्तिम समय में ऋषी पुत्र ने देह प्रगट कर कहा कि मै ऋषी उग्रतपा का पुत्र हूँ और मेरा आश्रम पास में ही है . आप मेरी मृत देह को मेरे पिताजी तक पहुँचा दे . ऐसा कहकर ऋषी पुत्र ने देह त्याग दी .

राजा को ब्रामण हत्या का अत्यधिक दुःख हुआ और वे ऋषी पुत्र की देह उठाकर आश्रम तक ले गए और हाथ जोड़कर ऋषी से बोले आपके पुत्र का हत्यारा मै काशी नरेश चित्रसेन हूँ आपका पुत्र धोके से मेरे हाथ से मारा गया है . बदले में जो सजा या श्राप आप देंगे मै भुगतने के लिए तैयार हूँ . अपने प्यारे पुत्र की लाश देखकर ऋषी और पुत्र की माँ भाई वगैरह सभी रोने लगे . अंत में सब बाते जानकर ऋषी ने राजा को सांत्वना देकर कहा की आपका कोई दोष नही है और अब हम सपरिवार जीना नही चाहते है . आत्मदाह द्वारा हम सभी अपने प्राणों का त्याग कर रहे है . आप हमारी अस्थियाँ समेटकर शूलभेद तीर्थ में विसर्जित कर देना ऐसा कहकर ऋषी मुनि ने मय पत्नी लडके तथा समस्त बहुंये समेत आत्मदाह कर लिया .

राजा बेबस मन से यह सब देखते रहे और उन्होंने अस्थियाँ समेटी और धोड़े पर सवार होकर शूलभेद तीर्थ की और निकल पड़े और उन्होंने अस्थियाँ शूलभेद तीर्थ में विसर्जित कर दी . देखते ही देखते ऋषी उनकी पत्नी और बच्चे एक दिव्य विमान में बैठकर आकाशमार्ग से स्वर्ग जा रहे थे . दिव्य विमान से ऋषी ने राजा को आशीर्वाद देकर बोले हम सब शूलभेद तीर्थ की कृपा से हम लोग स्वर्ग जा रहे है राजा तुम ब्रम्ह हत्या से मुक्त हो गए हो .

नमामि माँ नर्मदे ..नर्मदे हर

1.9.08

माँ नर्मदा प्रसंग : शूलपाणी झाड़ी

शूलपाणी की झाड़ी राजघाट (बड़वानी) नामक स्थान से शुरू होती है . इस झाड़ी में नर्मदा भक्त भीलो का राज है . उस क्षेत्र से जो भी परिक्रमावासी निकलते है उनका भील सब कुछ छुडा लेते है और परिक्रमावासी के पास सिर्फ़ पहिनने के लिए लगोटी बचती है . परिक्रमावासी की वहां पर परीक्षा की घड़ी होती है . उस दौरान परिक्रमावासी को अपना धैर्य बनाये रखना चाहिए और सदा की भाति प्रेम से नर्मदा भजन करते रहे . माँ नर्मदा संकट के समय सहारा देती है .
जो परिक्रमावासी का सब कुछ छुडा लेते है और उन्ही से अपने भोजन आदि की व्यवस्था करने का निवेदन करे वो ही नर्मदा भक्त भील आपको खाना और दाना देंगे . आप अपने मन को दुखी न करे और प्रसन्न रहे . ये शरीर नाशवान है जिसका कभी भी अंत नही होता है .
कहा जाता है कि उन झाडियो में श्रीशूलपाणेश्वर भगवान ज्योतिलिंग है उनके दर्शन के लिए भूखे प्यासे रहकर कठोर दुखो को सहनकर प्रेम से झाड़ी के आदि में उनका मन्दिर है......के दर्शन कर अपने जीवन को सफल बनाये . परिक्रमावासियो से अनुरोध है कि वे शूलपाणी की प्रसिद्द झाडियो में अवश्य जाए और दर्शन लाभ प्राप्त करे.

बोलो शूलपाणेश्वर भगवान की जय .

दक्षिण तट - झाड़ी राजघाट बड़वानी से प्रारम्भ होकर शूलपाणेश्वर मन्दिर में समाप्त होती है .
उत्तर तट - गुरुपाणेश्वर से प्रारम्भ होकर कुक्षी चिखलदा पर समाप्त होती है .
दोनों तट की लम्बाई १६० मील है .

रिमार्क - जिन परिक्रमावासियो को अपने समान से लगाव है वो दक्षिण तट राजघाट से तीन किलोमीटर दूर भीलखेडी गाँव में पटेल साहब जो प्राचीन भील राजा के वंशज है उनके पास जमा करा दे और वापिसी के पश्चात प्रमाण देकर अपना सामान वापिस पा सकते है . यदि परिक्रमावासी उस स्थान पर नही जाते है तो उनकी नर्मदा परिक्रमा अधूरी मानी जाती है .
बोलो शूलपाणेश्वर भगवान की जय .

गोटमार मेला : आज मारेंगे एक दूसरे को पत्थर और कहेंगे भाई मजा आ गया ?

जब दो गुटों में झगडा हो जाता है लोग एक दूसरे को मारने और मारने के लिए एक दूसरे पर पत्थरो की बौछार करते है और लोग घायल हो जाते है खून-खच्चर हो जाते है पर छिंदवाडा जिले से तकरीबन ८० किलोमीटर दूर गोटमार मेले का आयोजन परम्परा का निर्वाह करने के किया जाता है जहाँ लोग समूह में एक दूसरे पर पत्थर बरसाते है और यह मेला विश्व में अपने तरह का अनोखा माना जाता है .यह आयोजन ठीक पोला के दूसरे दिन आयोजित किया जाता है . माँ चंडी के दरबार में परम्परा का निर्वाह करने के लिए सैकडो लोग जाम नदी के तट पर इकठ्ठा होंगे और एक दूसरे पर पत्थरो से हमला करते है लोग घायल होते है और कई जाने अतिउत्साह में जाती है और यह आयोजन प्रशासन की देखरेख में आयोजित किया जाता है हालाकि प्रशासन और शासन द्वारा यह आयोजन बंद कराने के अनेको प्रयास किए गए परन्तु परम्परा के नाम पर इस आयोजन को रोक पाने में प्रशासन और शासन को असफलता ही हाथ लगी है .


यह आयोजन कब से शुरू किया गया है इसकी जानकारी किसी को नही है . लोग एक दूसरे पर पत्थर बरसाकर माँ चंडी की अनोखी पूजा करते है . यहाँ के लोगो का यह मानना है कि भलाई जान चली जाए पर वे इस परम्परा का निर्वाह जरुर करेंगे . इस मेले के सम्बन्ध में कई कहानियाँ सुनी जाती है कि इस खूनी खेल शुरू होने का कारण क्या है यश कोई नही जानता है . सैकडो वर्षो से सावरगांव और पाढुनां के निवासी जाम नदी के तट पर इकठ्ठा होते है और पलाश के पेड़ को निशाना सड़ते हुए एक दूसरे पर पत्थरो से हमला करते है . इस खूनी पत्थरबाजी को देखने के लिए महाराष्ट्र,मध्यप्रदेश के अलावा विदेश से लोग यहाँ आते है .



इस मेले के सम्बन्ध में यह भी माना जाता है कि सावरगांव की लड़की से पदुराना के किसी युवक का प्रेम हो गया और इस युवक ने लड़की को लेकर भागने का प्रयास किया पर यह बात सावरगांव के लोगो को पता लग गई . युवक जैसे ही युवती को लेकर नदी के तट पर पहुँचा तो सावरगांव गाँव के लोगो ने युवक पर पत्थर बरसाना शुरू कर दिया और उस युवक पर हमला होते देख उसके गाँव वालो ने दूसरे गाँव वालो पर पत्थर बरसाना शुरू कर दिया . बात यहाँ तक बिगड़ गई कि लोग खून खच्चर हो गए और सैकडो लोगो को अपनी जान गवानी पड़ी और इन प्रेमियो की याद में यह खूनी खेल खेला जाता है जबकि इन गाँव वालो के बीच आपसी दुश्मनी नही है .



एक कहानी और जुड़ी है नागपुर में भौसले महाराज का राज्य शासन हुआ करता था .भौसले महाराज ने दलपतशाह को शासन करने के लिए सावरगांव और पांडुरना का इलाका दिया था और बाद में दलपतशाह ने विद्रोह कर दिया . उस समय भौसले शाह महाराज शक्तिशाली शासक थे और उन्होंने इस बगावत को दबाने के लिए सेना भेजी . दलपतशाह के पास कम सेना थी पर उसके आदिवासी जांबाजों ने जाम नदी के तट पर भोसले की सेना पर पत्थरो से हमला कर उसकी सेना को भगा दिया . ऐसी किवदंतियो को लेकर इस गोटमार खूनी खेल का आयोजन किया जाता है . शासन और प्रशासन इस मेले को लेकर काफी सजग रहता है की किसी प्रकार की घटना घटित न हो पर फ़िर भी हजारो लोगो को अपनी जान और हाथ पैरो गवाना पड़ते है .

गोटमार मेले का समापन

कल तक जो एक दूसरे के दोस्त थे जो एक दूसरे पर जान छिड़कते थे आज वे परम्परा का निर्वाह करने के लिए एक दूसरे के दुश्मन बन गए . आज शाम तक चले भीषण खूनी पत्थरबाजी में १ व्यक्ति की मौत हो गई और करीब ४१२ व्यक्ति घायल हो गए . शाम को प्रशासन के अधिकारियो द्वारा दोनों और के गुटों की सहमति से इस खूनी पत्थरबाजी को बंद कराया .


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