1.2.09

महेन्द्र .....जिंदगी एक तपस्या है


जिंदगी एक तपस्या है

परीक्षा की घड़ी में सबको इसकी परीक्षा देना है
जिंदगी के मोड़ पर अनेको सुख दुःख तो आते है
सभी को इस परीक्षा में फ़िर भी सफल होना है

जिंदगी एक तपस्या है

इसमे कुछ सफल और कुछ असफल हो जाते है
डरकर अपनी जिंदगी से जो मुँह मोड़ लेते है
वे धरती धरा पे डरपोक महा कायर कहलाते है

जिंदगी एक तपस्या है

जिंदगी एक तपस्या है जिंदगी एक परीक्षा है
तमाम अपनी ये जिंदगी एक नाव के समान है
इस जिंदगी की नाव को वैतरणी पार लगाना है

जिंदगी एक तपस्या है

महेन्द्र ये जिंदगी एक कडुआ घूट के समान है
इस कडुआ घूट को नीलकंठ बन...पीना भी है
नीलकंठ बन जिंदगी हँस कर फ़िर भी जीना है
जिंदगी एक तपस्या है

महेन्द्र मिश्र
जबलपुर
रिमार्क- भूलवश कविता का शीर्षक ग़लत दल दिया था अब सुधार कर "जिंदगी एक तपस्या है" सही कर दिया है . त्रुटी के क्षमाप्राथी .

27.1.09

व्यंग्य - दुनिया में कैसे कैसे लोग होते है जिनका काम है फूट करो और राज करो ?

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय लोग यह कहा करते थे कि अंग्रेजो का काम था लोगो में आपस में फूट डालो और राज करो और अपना उल्लू सीधा कर अपना परचम फहराओ . अंग्रेज तो चले गए है पर वे अपनी नीति हम भारतीय लोगो को दिल से सिखा गए है और उस नीति का प्रयोग कुछ भारतीय जन बखूबी प्रयोग कर रहे है . कुछ लोग अपना उल्लू सीधा करने के इस नीति का भरपूर प्रयोग कर है . ऐसे जनों को आप क्या कह सकते है .

ऐसा ही एक वाकया गए गुजरे दिनों मेरे साथ हुआ है . आज भी वह बात मुझे रह रह कर कसोट रही है कि मैंने ऐसे व्यक्ति से उसकी उपरी सज्जनता को देखकर अचानक दोस्ती कैसे कर ली . वाकया इस प्रकार है . ब्लागिंग के क्षेत्र में मै करीब दो सालो से कलम उकेर रहा हूँ . ब्लागिंग के दौरान मित्रता का क्षेत्र बढ़ा . जब मित्रो के बारे में कुछ करने की सोची . न जाने कहाँ कैसे मुलाक़ात हो गई . मैंने बताया की भाई अब याहब भी कुछ कर लो तो भाई ने फोन नंबर लिया तड से संपर्क किया . एक कार्यक्रम में दूसरे के कार्यक्रम में उन महोदय से मुलाक़ात की और मौके भरपूर लाभ उठाने की द्रष्टि से एक कार्य शाला आयोजित करने की घोषणा कर डाली और जोरदार तालियाँ पिटवा ली . वे महोदय चले गए और वे भी घोषणा करके चले गए पर कार्य शाला डेढ़ वर्ष गुजर जाने के बाद भी आज तक आयोजित नही की गई .

जनाब की अगली कारगुजारी भी देखिये . मौके पे गए नही किसी के पर अपना नाम हो अपनी वाह वाही हो तो मौके का लाभ उठाते हुए अपनी मर्जी से एक काम कर डाला . पहले उस काम को करने के लिए किसी की सलाह चाहते थे और अवसर जानकर उस काम को दूसरे की सलाह लिए बिना कर लिया और सभी को ठेल दिया और कह दिया मुझे कार्यक्रम जल्दी करना था तो कर लिया .

कार्यक्रम के बाद कह दिया जो आए तो उनका आभार और जो न आए उनका आभार . जब मैंने यह पढ़ा तो असल मेरी जल्दी समझ में आ गया कि भैय्या ये तो मौका परस्त है . चार नए लोगो को खड़े कर वाहवाही तो लुटवा ली पर सामने वाले आपके पूर्व परिचितों के सामने उनकी कलई तो खुल गई . एक वाकया और एक रात फोन किया आप क्यो नही आए तो मैंने कहा व्यक्तिगत परेशानी थी . उदास होकर बोले किसी ने आपको भड़का दिया है यहाँ तो खेमाबाजी और गुटबाजी है .

यह सब सुनकर मेरा दिल उदास हो गया . मै ऐसा इंसान नही हूँ और न मेरे पास समय है कि मै यह सब कर सकूँ यह सब सोचकर परेशान रहा तो मित्र लोगो ने बताया कि ये तो उनकी पुरानी आदत है खलल डालना और वाह वाही लूटना . .....और वे महोदय हर क्षेत्र में खेमाबाजी में चर्चित रहते है और खेमेबाजी और गुटबाजी में विश्वास करते है और क्षेत्रो के पुराने खल है .

आज मैंने अंग्रेजो की फूट डालो नीति को दिल से अनुभव किया कि यह बुराई हम भारतीय जनों के रगों में अब भी दौड़ रही है . भाई अंग्रेज चले गए पर भारतीय लोग जो नीति का पालन कर रहे है यह नीति बुराई कब छोडेंगें ? . इस तरह की ऐसे लोगो की हरकतों से लोगो में कटुता का ही वातावरण निर्मित होता है और इसमे किसी कि भलाई नही है .. यह सब जानकर मैंने भी संकल्प कर लिया है कि ऐसे मौकापरस्त लोगो से मुझे दूर रहना चाहिए उसमे ही मेरी भलाई है .

व्यंग्य-महेंद्र मिश्र
जबलपुर

26.1.09

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ देश प्रेम भक्ति से जुड़े कुछ गीत



आज के दिन हमारे देश का संविधान बनाया गया था यह बात दुहराने की नही है सभी को विदित है . आज के समय में बदलते घटनाक्रमों के परिपेक्ष्य में हम सभी भारत वासियो को यह सोचना चाहिए कि क्या हमारा देश और हमारा गणतंत्र सुरक्षित है . सभी को देश की आन बान शान के लिए मातृभूमि को सर्वस्य निछावर और बलिदान करने का संकल्प लेना चाहिए . हम अपनी मातृभूमि के श्रणी है जिसने हमको जन्म दिया यह नही भूलना चाहिए .

मेरी खुशी इस पर्व पर दुगनी हो जाती है गणतंत्र दिवस के दिन मेरे छोटे भाई की बच्ची आयुषी "मिनी" का 7 वां जन्मदिन है . बहुत ही तेज नन्ही सी डांस से पढ़ाई लिखाई तक हमेशा शील्ड पुरस्कारों से नवाजी जाती है जो मुझे दादा संबोधित करती है . बचपन से ही उसे जन्मदिन के अवसर मै एक राष्ट्रीय तिरंगा झंडा उपहारों के साथ देता हूँ .इस पुनीत पर्व के पावन अवसर पर कुछ लोकप्रिय गीत जिन्हें सुनकर पढ़कर देशप्रेम का जज्बा पैदा होता है और नसों में खून दौड़ने लगता है . आप सभी को बाँट रहा हूँ .




जागेगा इंसान जमाना देखेगा
नवयुग का निर्माण जमाना देखेगा
देवता बनेगे मेरे धरती के प्यारे
हम सुधरे तो जग को सुधारे
चमकेगा देश हमारा मेरे साथी रे
आँखों में कल का नजारा मेरे साथी रे
धरती पे भगवान ज़माना देखेगा
जागेगा इंसान ज़माना देखेगा

मिल जुल के होंगे सारे खुशियों के मेले
कोई न रो पायेगा देख में अकेले
जागेगा देश हमारा मेरे साथी रे
आँखों में कल का नजारा मेरे साथी रे
कल का हिन्दुस्तान जमाना देखेगा
जागेगा इंसान ज़माना देखेगा
*


वह शक्ति दो हमें दयानिधि कर्तव्य मार्ग पर चढ़ जावे
पर सेवा का उपकार में हम निज जीवन सफल बना जाए

हम दीन दुखी निबलो विकलो के सेवक बन संताप हरे
जो हों भूले भटके बिछुडे उनको सारे ख़ुद तर जावें

चल द्वैष दंभ पाखंड झूठ अन्याय से निशदिन दूर रहे
जीवन हों शुद्ध सरल अपना शुची प्रेम सुधा रस बरसायें

निज आन मान मर्यादा का प्रभु ध्यान रहे अभिमान रहे
जिस देश जाति में जन्म लिया बलिदान उसी पर हों जायें
*

हम बदलेंगे युग बदलेगा यह संदेश सुनाता चल
आगे कदम बढाता चल बढ़ता चल बढाता चल

अन्धकार का वक्ष चीरकर फूटे नव प्रकाश निर्झर
प्राण प्राण में गूंजे शाश्वत सामगान का नूतन स्वर

तुम्हे शपथ है हृदय हृदय में स्वर्णिम दीप सजाता चल
स्नेह सुमन बिखराता चल तू आगे कदम बढाता चल

पूर्व दिशा में नूतन युग का हुआ प्रभामय सूर्य उदय
देवदूत आया धरती पर लेकर सुधा पात्र अक्षय

भर ले सुधापात्र तू अपना सबको सुधा पिलाता चल
शत शत कमल खिलाता चल तू आगे कदम बढाता चल

ओ नवयुग के सूत्रधार अविराम सतत बढ़ते जाओ
हिमगिरी के ऊँचे शिखरों पर स्वर्णिम केतन फहराओ

मंजिल तुझे अवश्य मिलेगी गीत विजय के गाता चल
नव चेतना जगाता चल तू आगे कदम बढाता चल
*
गणतंत्र दिवस के अवसर पर आप सभी ब्लॉगर भाई बहिनों को मेरी अनेकानेक शुभकामनाये और बधाई.

महेन्द्र मिश्र
जबलपुर.

22.1.09

तीसरी आँख से - * वन मैन शो *

यदि किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व और कृतित्व असाधारण होता है तो सभी उसका नेतृत्व स्वीकार कर लेते है और उस व्यक्ति के हर आदेश को स्वीकार कर लेते है ऐसे व्यक्ति के कार्य को * वन मैन शो * कहा जा सकता है.

परन्तु इसके विपरीत कुछ विशेष वर्ग में इस तरह के आदमी पाये जाते है जो उस वर्ग के सदस्यों से आपस में परामर्श किए वगैर अपनी मनमर्जी करता है और अपनी अहमियत साबित करने के लिए कुछ भी कार्य करता है जबकि वह समझता है कि उस वर्ग समुदाय के लोग उसकी बात मानेगे और उसके हर कार्य में सहमति देंगे और उसे वाहवाही मिल जावेगी परन्तु जो कार्य वह अपनी मनमर्जी से कर रहा होता है उससे वर्ग समुदाय के लोग खुश नही रहते है और उसे दिल से वाहवाही नही देते है .. .. ऐसे व्यक्ति का कार्य * वन मैन शो * नही कहा जा सकता है और भविष्य में आदर के पात्र नही होते है ...
इस बारे में हर आदमी के अलग अलग विचार हो सकते है ...

18.1.09

अपने गेसुओ के साए में गुलो की छाँव को दिल से बनाए रखना



महफ़िल सितारों की देखकर प्यार के महफ़िल की याद आती है
फलक में उस चाँद को देखकर महबूबा की दिल से याद आती है.

*

अपनी वफ़ा को सीने में लगाकर हम यह ठिकाना छोड़ चले है
न मंजिल की ख़बर और न राहो की ख़बर फ़िर भी मुसाफिर है.

*

अपने गेसुओ के साए में गुलो की छाँव को दिल से बनाए रखना
अमानत दी है मैंने तुझे तुम अपने दिल में दिल से संजोये रखना.

*

महेंद्र "निरंतर"

15.1.09

व्यंग्य मच्छर नामा : मेरी कर्णप्रिय भुनुर भुनुर आवाज सुनो.

मै हूँ मच्छर जैसा आप सभी को मालूम है कि मै गलियो कूंचों या सीधे ये कहे कि मै सभी जगह का बेताज बादशाह हूँ . अभी तक नेट पर अपने तरह तरह की मेरे बारे में कविताएं व्यंग्य पढ़े पर मै आज आपको अपनी आवाज की गति के बारे में जानकारी दे रहा हूँ . मेटिंग के पहले आपको आपके कान के पास में मै और मेरी मादा (पत्नी) भुनुर भुनुर मधुररम गीत जो आपके कानो को अप्रिय लगते है ...... सुनाया करते है .





आप क्या भुनुर भुनुर गीत के बारे में जानते है असल में यह मच्छरों का प्रेम गीत है . जब मै और मेरी मादा एक साथ इकठ्ठे होते है तब हम दोनों मिलकर प्रेम गीत गाते है इसी को भुनुर भुनुर गीत कहते है . जब हम दोनों कुछ ही सेंटीमीटर की दूरी पर होते है तो एक दूसरे को पटाने के लिए कर्णप्रिय संगीत भुनुर भुनुर कर पैदा करते है और एक दूसरे से बातचीत करते है . यदि मै भुनुर भुनुर न करूँ तो रानी पटेगी कैसे ?



मेरी मैडम मच्छर के पंख फडफडाने से जितनी ध्वनि होती है उससे भी तेज गति की आवाज अपने कंठ से प्रेम विरह में पीड़ित होकर निकलती है . मेरी मैडम मच्छर एक सेकेण्ड में ४०० हर्टज की गति से आवाज निकालती है और मै एक सेकेण्ड में ६०० हर्ट्स की गति से आवाज निकालता हूँ . अब मेरे सुनने वाले अंगो में विशेष प्रकार के भाई लोगो ने यंत्र फिट कर दिए है और मेरी भुनुर भुनुर आवाज विशेष माइक्रोफोन से सुनी गई है .

अंत में दो टूक

यदि आप जल्दी जल्दी खाते है और इंतजार करते करते जल्दी उदास हो जाते है . हर काम के लिए सदा हडबडी करते है तो सावधान आपको हाई ब्लड प्रेसर या दिल का दौरा पड़ सकता है . अपनी आदतों में सुधार लाये और अपनी जीवन की दिनचर्या में परिवर्तन करे जो आपको रोगों से दवाओं से निजाद दिला सकती है .

हरी ॐ

12.1.09

कुछ अंदाज़ आपके लिए



आज सोचा कि जबाब क्या भेजू
आप जैसे दोस्त को ख़िताब क्या भेजू
कोई फूल हो तो नही मालूम
जो ख़ुद गुलाब हो उसे गुलाब क्या भेजू
महक इश्क़ की कम नही होती
ज़िंदगी से उसकी ख़ुशबू कम नही होती
साथ अगर हो आप जैसा दोस्त
तो ज़िंदगी जन्नत से कम नही होती
कुछ लोग बहुत ख़ास होते है
हर पल दिल के पास होते है
ख़ुशी हो या ग़म वे सदा साथ रहते है
लोग उन्हे दोस्त हम उन्हे आप कहते है.
आपके ख़्यालो से फ़ुरसत नही मिलती
हमे एक पल राहत नही मिलती
मिल तो जाता सब कुछ
पर आपकी झलक नही मिलती
सुना है कि आपकी एक स्माईल
पर सभी फ़िदा हो जाते है
सो कीप स्माईलिंग
रिड्यूस दा पापुलेशन
रिश्ता एक ऐसा होना चाहिए
जो हमे अपना जान सके
हर दर्द को जान सके
चल रहे तेज़ बारिश मे साथ हम
फिर भी वो पानी मे हमारे
हर आँसू को पहचान सके.

लेखक-अनाम(मालूम नही)

9.1.09

एक हम है जो रास्ते भूल जाते है



हमें रास्ते चलने की सीख देते है
एक हम है जो रास्ते भूल जाते है.
रास्ते हमें मंजिल तक पहुंचाते है
रास्तो को पीछे हम छोड़ आते है.

******

वादा खिलाफी की कोई हद है
हिसाब दिल में लगा कर देखो.
अगर मेरा ही दिल तोड़ना था
मुझसे प्यार- इजहार न करते
**********

6.1.09

मेरे बाद जमाना क्या पूछेगा कभी उसको

दोनों की किस्मतो का आज फैसला होगा
एक तरफ़ जमाना है एक तरफ़ मोहब्बत.

तुम अक्सर उलझी जुल्फों को सुलझाती हो
कभी तुमसे उलझी हुई किस्मत सुलझेगी.

किस्मत कहाँ.. मै उड़कर पहुँचू बहारो तक
कभी दिल में कभी गुलिस्ता को झांकता हूँ.

अपनी धुन में आज दुआ को भी भूल गया
नामे खुदा भूल गया वो जब करीब मेरे आये.

मेरे बाद जमाना क्या पूछेगा कभी उसको
उसकी दुनिया मै अपने साथ ले जा रहा हूँ.

4.1.09

व्यंग्य : आओ ब्लॉगर भाइओ : पजामा गेम की तर्ज पर पेंट चड्डी बनियान गेम खेले

आज सुबह सुबह अखबार पढ़ रहा था तो नजरे ठिठक गई . लेडीज काँलम में लिखा था ऑनली फार लेडीज . यह पढ़कर मेरी तीसरी इन्द्री सक्रिय हो गई सोचा जरुर की फंडे वाली चीज होगी वैसे आदमियो का मन महिलाओं के बारे में क्या खास लिखा है पढ़ने को उत्सुक हो जाता है .
अपुन ने भाई कुनकुनी धुप का आनंद लेते हुए पढ़ना शुरू किया जो पढ़ा सो आपकी नजरे इनायत कर रहा हूँ और आप सभी को पढ़ा हुआ बाँट रहा हूँ.
पाजामा पार्टी

पाजामा पार्टी की थीम दूसरी पार्टियो से कुछ हटकर होती है . इसमे उपस्थित महिलाओं को यह लगे कि जिंदगी ख़ूबसूरत है और बहारो से लदी फदी है . पाजामा पार्टी के बारे में आप यह समझ रहे होंगे कि इस पार्टी में बेहूदी हरकत होती होगी . इस पार्टी में पाज्मे नही पहिने जाते . पाजामा कही का आदि आदी .... क्योकि हमारे देश भारत में पजामे को पजामे की संज्ञा दी जाती है .
इस पार्टी की शुरुआत अमेरिका में हुई . इस पार्टी का चलन अमेरिका में काफी पुराना है . ये पार्टियाँ होटल रिसोर्ट आदी में आयोजित की जाती है . इन पार्टियो का माहौल बिंदास होता है . इन पार्टियो में महिलाओं को न रोटी ठोकने की दिक्कत और न घर की झंझट एक प्रकार से कोई टेंशन नही होता है . इन पार्टियो में गेम्स नाच गाना किटी पार्टी सैर सपाटा और खाने पीने का भरपूर इंतजाम रहता है .
खाने पीने की बात पे मुंह में पानी आ गया वाह साब मै भी सम्मिलित होता .
आगे ......इन पार्टियो में महिलाए सिर्फ़ पर्सनल बातें आपस में बांटती है . खूब खाती पीती है खूब होहल्ला करती है फ़िल्म देखती है . मस्ती करती है यानि की कुल मिलकर हंगामा और मोजा मोजा करती है , अलग अलग आयु वर्ग की महिलाए अलग अलग ग्रुप में पार्टियाँ करती है यानि की कुल मिलाकर जिसकी पटरी जिस से सेट हो जाए ..इसमे सिर्फ़ महिलाये ही शामिल होती है
युवतियां रूटीन वर्क ऑफिस वर्क बोरियत और एकांकीपन दूर करने करने के लिए तनावमुक्त होने की इस तरह की पार्टियाँ करती है . इस प्रकार की पाटियो के बढ़ते हुए चलन अब युवको और बुजुर्गो के लिए कौतुहल साबित हो रहे है .
अब आये मुद्दे की बात पर
ऑनली फार जेंट्स
: आओ ब्लॉगर भाइओ :ऑनली फार जेंट्स : : आओ ब्लॉगर भाइओ : पजामा गेम की तर्ज पर पेंट चड्डी बनियान गेम खेले

ये पढ़कर मेरे मन में एक विचार आया है कि हम ब्लॉगर भाई भी अपने रूटीन वर्क ऑफिस वर्क और कई कामो से लगातार बोर हो जाते है . घर का भार साल भर ढोते ढोते तनावग्रस्त हो जाते है . एसा लगता है कि अब बड्डे भाग लो और कही दूर वनवास चले जाओ.
फ़िर लगता है कि हमें अपने दायित्वों का निर्वहन करना है ......फ़िर टट्टू की तरह जुट जाते है और अति बोरियत महसूस करते है तो अब भागने की जरुरत नही है अपुन ब्लॉगर भाई भी तनाव दूर करने के लिए एकजुट होकर पजामा गेम की तर्ज पर पेंट चड्डी बनियान गेम खेले .
इसमे सिर्फ़ पुरूष शामिल होंगे . नाचेंगे कूदेंगे खायेंगे पियेंगे और ऐश करेंगे क्या . खूब होहल्ला करेंगे . इस गेम में कोई अपनी व्याहता(wife) को साथ लेकर नही आवेगा जिससे ९० परसेंट तक तनाव निश्चित दूर होने की गारंटी रहेगी.रिमार्क - हे भगवान अब दुनिया में क्या देखना बदा है ... हा हा हा.

चलो २0०९ के कुछ रोचक फोटो ..अखबार से साभार



गुरुकुल के छात्र पढ़ाई छोड़कर अब टार्जन बनने का अभ्यास कर रहे है.
२१ वी सदी में भी पानी कुछ इस तरह से मिल रहा है.

समाचार के साथ कुछ अपने विचार जोड़कर व्यंग्य रूप देने का छोटा सा प्रयास किया है.
महेंद्र मिश्रा
जबलपुर.

30.12.08

ओह : ब्लागिंग का नशा : दो वर्ष कट गए पता ही नही चला

इस तरह से मंजिले मकसद तक पहुंचे है
काँटों भरी राह को हमसफ़र समझा है.


एक समय अखबारों में पढ़ा था कि इंटरनेट पर ब्लाक्स के माध्यम से आप अपने विचार स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्त कर सकते है . घर में लगे नेट का फायदा उठाया और स्वयं का ब्लॉग बनाने में जुट गया आखिरकार भारी जद्दोजहद के बाद ब्लॉग बना लिया . मेरे परिजन प्रकाशक थे . सैकडो लाखो किताबे प्रकाशित होती थी . बचपन से लेखन की प्रेरणा मुझे अपने परिवारवालों से मिली है. लिखने का शौकीन मै बचपन से रहा हूँ . अखबारों में लेख कहानी आदि सामायिक समस्या पर अपने विचार रखता रहता था उसके पश्चात मध्यप्रदेश जनहित संरक्षण समिति का संयोजक होने के नाते अखबारों में जमकर विज्ञप्ति बाजी की . विज्ञप्ति बाजी का काम भी आखिरकार बोरियत भरा लगा उससे भी उब गया .

इंटरनेट पर अपना ब्लॉग क्या बना लिया जैसे डूबते को एक तिनके की रोशनी दिखाई दे गई हो. सबसे पहले समयचक्र ब्लॉग बनाया . सबसे पहले मेरे ब्लॉग पर उड़नतश्तरी और उन्मुक्त जी आए और उन्होंने ब्लॉग हिन्दी में लिखने के लिए मेरी हौसलाफजाई की उसके बाद से मै निरंतर हिन्दी भाषा में निस्वार्थ भावः से इस भावना के साथ कि ब्लागलेखन को मुझे व्यवसाय नही बनाना है और न ही ब्लॉग के माध्यम से कोई कमाई करना है. ईश्वर ने मुझे जीवन यापन करने हेतु काफी कुछ दिया है बस उद्देश्य यह कि हिन्दी भाषा का परचम सारी दुनिया में लहराए . सारी दुनिया के लोग हिन्दी भाषा पढ़े और हमारी भाषा का स्थान सर्वोपरि हो . करीब पॉँच हजार लोग हिन्दी भाषा में ब्लॉग लेखन कर रहे है जोकि विश्व में काफी रूचि चाव के साथ पढ़े जाते है .

ब्लॉग लेखन के दो वर्ष पूरे होने के दौरान मैंने अनुभव किया कि ब्लाक्स एक दूसरे को जानने और एक दूसरे के विचारो को जाने के अच्छा माध्यम है . दो वर्षो के दौरान मेरी अनेको ब्लागरो से टेलीफोनिक बात हुई और कई ब्लागरो से मेल मुलाकात भी हुई . कई ब्लागरो से भाई चारा सम्बन्ध भी स्थापित हुए . भाई समीर लाल "उड़नतश्तरी", ज्ञानदत्त जी पांडे, राज भाटिया जी , दीपक भारतदीप जी, अरविन्द मिश्रा जी, रंजू जी, जाकिरअली रजनीश जी, विवेक सिग जी, पी.एन सुब्रमनियम जी, नीरज गोस्वामी, सुनीता शानू जी, कुमार धीरज जी, डाक्टर अनुराग जी, दिनेशराय जी द्विवेदी, परमजीतसिह बाली जी, स्मार्ट इंडियन, नीतेश राज जी, अनिल पुसादकर जी, भाई संजीव तिवारी जी, डाक्टर अमर कुमार जी, सीमा गुप्ता जी, प्रीती वर्थवाल जी, भाई प्रेमेन्द्र प्रताप सिह जी, अभिषेक ओझा जी, कुश जी ,रतन सिह शेखावत, मोनिका दुबे जी (भट्ट),मनुज मेहता जी , धीरु सिह जी, महक, अजय कुमार झा, विनय जी , अर्श जी, संगीतापुरी जी, अशोक "मधुप" जी , योगेन्द्र मौदगिल जी, प्रदीप मनोरिया जी, विष्णु बैरागी जी, अमित जी, सचिन मिश्रा जी, सुनीता शानू जी, रचना जी, राहुल सिद्धार्थ जी, शोभा जी, रंजना (रंजू )भाटिया जी, डाक्टर भावना जी, आशा जोगलेकर जी, रश्मि प्रभा जी, नारद मुनि जी, डाक्टर उदय मणि कौशिक जी, श्रद्धा जैन जी, जितेन्द्र भगत जी, मकरंद जी, एस.बी. सिह ,मानविंदर जी, पारुल जी, डाक्टर चन्द्र कुमार जी जैन जी, घुघूती बासूती जी ,अनूप शुक्ला जी और जबलपुर शहर के स्थानीय ब्लॉगर भाई विजय तिवारी "किसलय" जी, भाई सुशांत दुबे 'लाल और बबाल " जी, राजेश कुमार दुबे जी "डूबेजी",भाई पंकज स्वामी जी "गुलुस" आदि ब्लॉगर समय समय पर मेरे ब्लॉग पर आकर टीप /अभिव्यक्ति प्रदान कर मेरा मानसिक मनोबल बढाते रहते है जिसके फलस्वरूप ब्लॉग लेखन में मेरी निरंतर रूचि बढ़ती ही गई है.

नौकरी के उपरांत मुझे जो समय मिलता है उसका मै भरपूर उपयोग ब्लॉग लेखन में कर लेता हूँ . बर्तमान में मै "समयचक्र" "निरंतर" और प्रहार लिख रहा हूँ और भरसक प्रयास करता हूँ कि अच्छी कविताये, सामायिक लेख, व्यंग्य आदि इन ब्लागों के माध्यम से प्रस्तुत करूँ . ब्लॉग लेखन के दो वर्ष पूर्ण होने पर मै आप सभी का आभारी हूँ कि आपकी उत्साहवर्धक अभिव्यक्ति/विचारो से/ टीप से निरंतर ब्लॉग लेखन में मेरा मानसिक संबल बना रहा है जिसके फलस्वरुप मै दो वर्ष सफलतापूर्वक पूरे कर सका हूँ जिस हेतु आप सभी धन्यवाद् के पात्र है और मै आप अभी का आभारी हूँ और आप सभी से अपेक्षा करता हूँ कि भविष्य में भी आप सभी इसी तरह से उतासहवर्धन और अपना अमूल्य सहयोग प्रदान करते रहेंगे. ब्लागजगत से जो प्यार और सहयोग मुझे मिला है उसे द्रष्टिगत रखकर मै यही कहना चाहूँगा

जीना यहाँ मरना यहाँ
इसके सिवाय जाना कहाँ
तुम मुझको आवाज दो
हम है यहाँ हम है यहाँ



नववर्ष की हार्दिक शुभकामना और ढेरो बधाई और आने वाला वर्ष आपके जीवन में खुशियाँ बरसाए . आपका जीवन वैभवपूर्ण रहे और सुख सम्रद्धि लाये.

महेंद्र मिश्राजबलपुर.

28.12.08

पलक पांवडे बिछाये रहता हूँ सुबह शाम

याद करता हूँ हर रोज सुबह शाम तुझे
पलक पांवडे बिछाये रहता हूँ सुबह शाम.

इस दिल में बस तेरी मीठी यादे बसती है
खुदा से तेरे आने के लिए दुआ करता हूँ.

काश कभी गर ऐसा हो जाए ए मेरे खुदा
मेरे तन्हा ख्वाब हकीकत में बदल जाए.

वो मुझसे मिले और तमन्ना मेरी पूरी हो
मुझे फ़िर से बेइन्तजा मोहब्बत मिल जाए.

हर ख्बाव में हर तरफ़ हर नजर में बस
मुझे सीमा तुम ही तुम नजर आती हो.

मेरी बेपनाह मोहब्बत से तुम अंजान हो
क्या बात है मुझे तुम पसंद आने लगी हो.

दिल में अजीब टीस कशिश सी होती है
जब तुम मेरे ख्यालो में चली आती हो.

तेरी याद में जब लिखता हूँ मनपसंद शेर
ख्यालो और ख्बावो से दूर चली जाती हो.

25.12.08

आँगन में आज फ़िर से गुलाब खिला है



आँगन में आज फ़िर से गुलाब खिला है
शायद वो इस तरफ़ दो कदम चला है
आँखों में मस्ती है चेहरा गुलाबी सा है
मुझे यार का ख़त मुद्दतो बाद मिला है.

किस आफत में मेरी जान फंस गई है
चाहत में मेरा हर एक लम्हा गुजरता है
ओ मेरे महबूब निगाहें न फेरना मुझ से
हर खुशी है इस सूने हयात में गर तू है.

22.12.08

अपनी ढपली अपना राग अलापना कभी कभी मंहगा साबित हो सकता है.

कहा गया है कि व्यक्ति को उचित अनुचित का विचार करना चाहिए कि जो कार्य वह कर रहा है क्या समय के अनुरूप है या किसी ने जो सलाह दी है वह उचित है अथवा उचित नही है . कभी कभी व्यक्ति उचित अनुचित का ध्यान न रखकर अपनी ढपली और अपना राग अलापने लगता है और उस स्थिति में वह किसी की सलाह मानने को भी तैयार नही होता है और उसे अपने हित अहित का ख्याल भी नही रह जाता है जिसका खामियाजा उसे कभी कभी निश्चित रूप से भुगतने पड़ते है.
पंचतंत्र में मैंने आज एक कहानी पढ़ी है जिसमे लिखा है कि असमय गधे को गीत गाना कितना महंगा साबित हुआ. एक गधा भूखा प्यासा जंगल में घूमता फिरता रहता था उसकी दोस्ती एक गीदड़ के साथ हो गई. गीदड़ के साथ गधा घूम फिरकर बहुत मौज करता था और खा पीकर वह मोटा हो गया था. गीदड़ के साथ गधा एक रात तरबूज के खेतो में घुसकर खूब माल खा रहा था.



गधे ने गीदड़ से कहा - मामा मुझे बहुत अच्छा राग आता है मै तुम्हे एक गीत सुनाऊ.

गीदड़ बोला - बेटा भांजे यह समय राग सुनाने का नही है यहाँ हम चोरी से खा रहे है. तुम्हारा गाना सुनकर हमें खेत के रखवारे पकड़ लेंगे और हमारी पिटाई करेंगे.

गधा गुस्से से बोला मामा तुम जंगली होकर गीत का आनंद नही जानते हो . विद्या तो वह कला है जिस पर देवी देवता भी मोहित हो जाते है.

गीदड़ बोला - अरे तुम गाना नही गाते हो बस खाली रेंकते हो.



गधा क्रोध से बोला - मामा क्या मै गाना नही जानता हूँ अरे सात स्वर, उन्चास ताल, नवरस, छत्तीस राग और कुल १6५ गानों के भेद जो प्राचीनकाल में भरत मुनि ने सार रूप में कहें है उन सबका मुझे ज्ञान है. मामा तुम कहते हो मुझे कुछ नही आता है .

गीदड़ बोला - अरे अच्छा भांजे मै खेत के बहार जाकर खेत के रखवारे को देखता हूँ तुम खूब खुलकर गाना इतना कहकर गीदड़ चला गया.

अब गधा महाराज शुरू हो गए लगे जोर जोर से राग अलापने. गधे की आवाज सुनकर रखवारा हाथ में ताऊ का लट्ठ लेकर आया और उसने गधे की जोरदार धुनाई कर दी बेचारा गधा पिटता हुआ दौड़ लगाकर वहां से भाग गया. रास्ते में गधे को मामा गीदड़ मिल गया.

गीदड़ ने गधे से कहा - क्यो भाई बेवक्त राग अलापने का जोरदार मजा चख लिया है . इसीलिए कहा गया है जो अपना हित अहित नही समझते वो इसी तरह मार खाते है.

साभार कहानी-पंचतंत्र से.

19.12.08

हम इस तरह से मंजिले मकसद तक पहुंचे है


हम इस तरह से मंजिले मकसद तक पहुंचे है
मैंने काँटों भरी राह को हम सफर समझा है.



मेरी आँखों में बसे दिल को उतर कर नही देखा
समुन्दर नही देखा कश्ती के उस मुसाफिर ने.

चाँद तारे मुस्कुराते रहे, दिल में अरमां बने रहे
बढ़ता दर्द ढलती रात पर वो फ़िर भी नही आए.







गिरता है समुन्दर में दरिया बड़े उमंग उत्साह से
लेकिन दरिया में समुन्दर नही गिरता प्यार से

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16.12.08

जरा हंस मेरे यार इन जोगो पे

एक रईस मोटी काली एक सौन्दर्य विशेषज्ञ के पास यह पूछने गई कि उसे किस रंग का कपडा पहिनना चाहिए जिससे वह सुंदर और आकर्षक लगे .
सौन्दर्य विशेषज्ञ ने उसे सलाह दी देखिये श्रीमती जी भगवान ने गाने वाली चिडिया बनाई तो उसे कई रंग दिए. तितली को भी भगवान ने रंगबिरंगा बनाया पर भगवान ने हथिनी को सिर्फ़ एक ही रंग दिया है .

..........

कंजूस बाप ने अपने बेटे को एक चश्मा लाकर दिया . एक दिन बेटा कुर्सी पर चश्मा लगाये हुए बैठकर कुछ सोच रहा था .
बाप ने आवाज दी बेटा तुम क्या कर रहे हो क्या पढ़ाई कर रहे हो .
बेटा - नही पापाजी
बाप - फ़िर क्या तुम लिख रहे हो ?
बेटा - नही पापाजी
बाप - (गुस्से से) फ़िर अपना चश्मा उतार क्यो नही देता फिजूलखर्ची की आदत पड़ गई है.

..........

लेखक - दस साल लिखते रहने के बाद मुझे यह पता चला की मुझमे साहित्यसृजन की प्रतिभा बिल्कुल भी नही है.
मित्र - तो तुमने लिखना छोड़ दिया ?
लेखक - नही नही तब तक तो मै काफी प्रसिद्द हो चुका था.
.........


एक उपन्यासकार ने कहा "आखिरकार मैंने एक ऐसी चीज लिख ली है जिसे हर पत्रिका स्वीकार कर लेगी"
क्या है वह ? उसके मित्र ने पूछा
लेखक - "एक वर्ष के चंदे का चैक"

........

12.12.08

ये जिंदगी हमें दी है तो तेरी ख़ूबसूरत मोहब्बत ने

ये जिंदगी हमें दी है तो तेरी ख़ूबसूरत मोहब्बत ने
फूलो ने जैसे चमन में बहारो की ताजी खुशबू दी है.

तेरी फरामोशी का जिक्र ये जब सारा जमाना करेगा
वो समां आयेगा जब हर दिल आशिक दीवाना होगा.

सितारों को देख कर प्यार की महफ़िल याद आती है
फलक में देखकर चाँद को महबूब की याद आती है.

अपनी वफ़ा को सीने में लगाकर ठिकाना छोड़ चले है
न राहों न मंजिल की ख़बर फ़िर भी मुसाफिर बना हूँ।
......................

9.12.08

राज भाई अमां यार गुस्सा थूक दो कह दो मुंबई सबकी है

एक चिट्ठी अमां यार तुम्हारे नाम
तुम्हारी तलाश है तुम कहाँ हो यार


राज भाई
(मोस्ट वांटेड}
मेरा मुबई... मेरी मराठी भाषा..... यहाँ रहना है तो मराठी बोलो .......अन्यथा खैर नही है मारे जाओगे , यहाँ तुम बाहरी लोग...... नौकरी नही कर सकते हो और यहाँ फुटपाथ पर खोमचे का ठेला नही सकते हो .
भाई तुमने तो तहलका मचा दिया था और तुम्हारे नाम से लोग मुबई जाने से डरने लगे थे . अचानक इन बिना बुलाये मेहमानों ने तुम्हारे शहर में हमला कर दिया



सैकडो की जाने ले ली पर अमां यार समझ में नही आता है कि हमले के बाद तुम कहाँ छापामार तरीके से छुप गए और और तो और न जाने तुमने अचानक दहाड़ना भी बंद कर दिया . तुम्हारी दहाड़ न सुनकर हम भी हक्के बक्के रह गए और सोचा कि शायद तुम कोई नया गुल खिला रहे होगे.

पर एक जगह तुम्हारी बढ़िया फोटो मेरे हाथ लग गई है जिसे देखकर पता चला कि तुम आजकल कुत्ता प्रेम में व्यस्त हो .भाई मेरी सलाह है कि तुम कुत्तो से प्रेम करना छोड़ दो और आदमियो से प्यार करना सीखो यही तुम्हारे ताऊ समझाया करते थे पर एक तो तुम हो भेजे में कुछ चढ़ता ही नही है .
तुम्हारी पिछले दिनों बहादुरी देखकर भाई मै भी तुम्हारा मुरीद हो गया हूँ . तुम्हारे बयान तुम्हारी दहाड़ न सुनकर आजकल मेरा खाना भी नही पच रहा है सो याद कर लिया है आखिर तुम भी तो मेरे देश के मेरे परिवार एक सदस्य हो तो लाजिम है तुम्हारी खोज ख़बर तो करनी पड़ती है.

यार समझ में नही आता तुम इतने बहादुर हो जब तुम्हारी मुबई में आतंकी हमला हो रहा था तो तुम आखिर कहाँ रहे . अब तो मुबई से संकट के बदल हट गए है अब तो प्रगट हो जाओ तुम्हारी मुबई को उत्तरवसियो ने अपने प्राणों का बलिदान कर बचा लिया है . कहाँ हो तुम और तुम्हारे मनसे के वीर सिपाही जो गरीब उत्तरवसियो के खोमचे के ठेला पलटाते है और गरीबो के पेट पर बेवजह लात मारते है . दक्षिण और उत्तर के कई वीर तुम्हारी मुबई के लिए शहीद हो गए है शायद तुम्हे पता चल गया होगा . अब शान्ति का राज कायम हो गया है यार और अपना गुस्सा थूक दो और अपनी सेना सहित बिल से बाहर आ जाओ और यार एक बार तो कह दो मुंबई हम सबकी है .

देख मुन्ना भाई नाराज नई होने का
तुम्हारा

बड्डा
खुन्नसबाज.

6.12.08

व्यंग्य कहानी : गीदडो तुम अपनी मांद में ही अच्छे लगते हो शेरो के बीच तुम्हे मौत नसीब होगी

आज बड्डे बड़े उदास थे. रह रहकर उन्हें अपनी बन्नो ब्लॉगर की काफी याद आ रही थी पता नही आतंकवादियो के हमले के बाद से बन्नो बाई न जाने कहाँ लुक छिपकर बैठ गई थी . अब बड्डे से न रहा गया सो वे बन्नो के घर खोजते खाजते पहुँच गए. एक बन्नो ने बड़ी मुश्किल से घर के दरवाजे खोले और बड्डे से अन्दर आने को कहा.

हाल चाल पूछने और चाय पानी पीने के बाद बड्डे ने बन्नो ब्लॉगर से कहा भाई क्या बात है आजकल तुम्हारा अता पता नही चलता है क्या बात है ? ब्लॉग में छुट पुट पोस्ट दे रही हो आखिर क्या बात है .

बन्नो - का खाक पोस्ट लिखे चारो तरफ़ चीख पुकार मार काट मची रहती है . जब देश में शान्ति रहती है तो हमारे ही लोग चीख पुकार मार काट मचाये रहते है जब ये शांत हुए तो मुंबई में बाहरी आतंकवादियो ने मार काट मचा दी और लोगो ने काफी चीख पुकार की . सैकडो निरीह लोगो को अपनी जाने गवानी पड़ी यह सब देख सुनकर मेरी ह्रदयात्मा दुखी हो गई है कुछ लिखने को अब मन नही करता है.

बड्डे - भाई यह घटना तो असामयिक घटित हो गई है इससे हम सभी को सबक लेना चाहिए और इन घटनाओ से निपटने के लिए अब हमें मानसिक रूप से तैयार रहना होगा . ऐसे गीदडो से डर गए तो कुछ भी नही कर सकते है जो समय आने पर शेर की खाल पहिन लेते है . मुबई में दो तरह के गीदड़ देखे गए है एक स्थानीय गीदड़ जो समय आने पर अपनी केंचुली से बाहर आते है और शेर की खाल ओड़ लेते है और दूसरे गीदड़ जिन्हें हाल में मुंबई के लोगो ने भोगा है.

बन्नो बाई को फ़िर अपने बड्डे ने गीदडो की ये कहानी सुनाई और कहा बन्नो तुम इस कहानी से सीख लो और इन गीदडो से मत डरो -

एक जंगल में शेर शेरनी अपने बच्चो के साथ शिकार के लिए जा रही थी तो राह में एक गीदड़ का बच्चा मिल गया . शेर शेरनी को इस गीदड़ के बच्चे पर बहुत दया आ गई उन्होंने उसे अपनी पीठ पर बैठा लिया और अपने घर ले गए . गीदड़ का बच्चा अब शेर के बच्चो के साथ खाने पीने लगा और उनके साथ खेलने लगा . खा पीकर वह खूब मोटा ताजा हो गया . एक दिन गीदड़ का बच्चा शेर के बच्चो के साथ जंगल में खेल रहा था.

अचानक गीदड़ ने अपनी तरफ़ एक हाथी को देखा और उसने शेर के बच्चों को हाथी को दिखाया . शेर के बच्चे आखिरकार शेर के बच्चे थे उन्होंने तत्काल हाथी पर हमला करने का विचार किया तभी गीदड़ का बच्चा जोर से चिल्लाया भागो यहाँ से वरना जान चली जावेगी और यह कहकर वहां से भागा यह देखकर शेर के बच्चो ने भी भागने में ही अपनी भलाई समझी और वहाँ से फूट लिए. घर पहुंचकर शेर के बच्चो ने गीदड़ के बच्चे से कहा तुमने हाथी के सामने से हम लोगो को भागने के लिए क्यो कहा और शेर के बच्चे गीदड़ के बच्चे से लडाई झगडा करने लगे और उन्होंने उस गीदड़ को काफी मारा पीटा.

तभी उन शेर बच्चो की माँ वहां पहुँच गई. लडाई रोककर लड़ाई का कारण पूछा और कहा बेटा इसे मरो मत यह मर जावेगा यह सारा दोष तो इसकी जाति का है. यह तुम लोगो के साथ रह रहा है जरुर पर यह शेर पुत्र नही है. यह जंगल में पड़ा मिला था पला पोसकर मैंने इसे इसीलिए बड़ा किया था की एक दिन यह बड़ा होकर हमारी मदद करेगा पर मदद करना तो दूर छिपा बैठा रहा और दूसरो को भागने की सलाह देता है.

फ़िर शेरनी ने गीदड़ के बच्चे से कहा कि तुम शेरो के साथ रहकर शेर की खाल पहिनकर शेर नही बन सकते हो तुम यहाँ से भाग जाओ इसी में खैर है वरना मारे जाओगे.

आखिरी में बड्डे ने लम्बी साँस लेकर कहा देखो बन्नो शेर की खाल पहिनकर गीदड़ बिलों में छिपकर बैठे रहे और बाहरी गीदड़ तुमने देखा पढ़ा होगा अपनी मौत मारे गए अब काहे का डरना बन्नो जी हा हा हा आखिर गीदड़ तो गीदड़ होते है इनसे डरने की अब जरुरत नाही है.


महेंद्र मिश्राजबलपुर.

1.12.08

तुझे रुसवा न करेंगे अपने अल्फाजो से हम

हर मोड़ पर खुशी मिले जरुरी नही है
हंसके उठाते रहिये गम भी लाजिम है

यहाँ हर शख्स दोस्त नही हुआ करता
रस्मे दुनिया है यारा हाथ मिलाते रहिये

अंधेरे में जलते चिरागों को न बुझाओ
आग इस महकते चमन में न लगाओ

आज हर शख्स के...अजब से हाल है
शाद होकर भी हाले दिल हाल बेहाल है

उनके ओठों पर एक झूठी मुस्कान सी है
गमो के निशान ..उनके चेहरों पर भी है

गर तुम्हे चलना नही आता है राहेवफा पे
तो कांटे न बिछाओ तुम औरो की राह पे

तुझे रुसवा न करेंगे अपने अल्फाजो से हम
मरकर न करेंगे तेरी बेवफाई का जिक्र हम

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28.11.08

मुंबई घटनाक्रम के सन्दर्भ में - वो बेवजह गुनाह कर रहे है..

चुनाव कार्य पूर्ण करने के उपरांत आज समाचार पत्रों में टी.वी. में मुंबई में चल रहे घटनाक्रम को देखकर ह्रदय व्यथित हो गया है . धमाको से कई निरीह लोगो की जाने चली गई और आतंकवादियो द्वारा खुलकर खूनी खेल खेला गया उसे देखकर यह सोचने लगा हूँ कि लगातार घटनाये हो रही है जाने जा रही है आखिर इन सबके लिए कौन जिम्मेदार है ? क्या हमारी व्यवस्था इसी घटनाओ को रोकने में सक्षम नही है ? क्या हम ऐसी आतंकवादी घटनाओं को रोकने के लिए पूर्ण रूप से निपटने के लिए अपनी मानसिकता नही बना सके है ? आज की आतंकी घटना के संदर्भ में मन में उभरी कुछ पंक्तियाँ दे रहा हूँ -

वो बेवजह गुनाह कर रहे है
और तौबा करते है
मानवीयता को दरकिनार रख
निरीह अरमानो का
बेदर्दी से
खूनी सौदा कर रहे है.
खूनी नदिया
बह जाने के बाद
हम अपने ही
बाग़ और बगियाँ को
कोस रहे है .

बेवजह आतंकवादी घटनाओ में मृत सभी निरीह जनों को व्यथित ह्रदय से श्रध्धांजलि अर्पित है . ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे .

...............

24.11.08

दिल से मेरे प्यार को,दिल में बसा ले.

मेरा दिल चाहे, कि कोई तो मेरा हो
मै वहां जाऊ, जहाँ हासिल हो खुशी.

मेरा दिल, ऐसे दिलदार को तरसता है
दिल से मेरे प्यार को,दिल में बसा ले.

दो बाते, जी चाहकर भी कर न सके
वो फ़िर, करके इकरारे मोहब्बत गए.

खुली थी आंख, वो दिल में समां गए
सीने में आग लगा गए, जब वो गए.

न समझेंगे न समझे अपना ख्याल करो
कुछ तो रहम, उस शोख जवानी पे करो.

न दिल पे एतबार न तुझ पे इख्तियार
फ़िर भी न जाने, क्यो तेरा इंतजार है.

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19.11.08

यूँ ही चुपचाप से गुजर गया बहुत चाहने वाला..



शख्स कितना कमजोर था आइना बनाने वाला
जीतता रहा है वो अक्सर पत्थर बनाने वाला.

यूँ ही चुपचाप से गुजर गया बहुत चाहने वाला
महसूस किया पत्थर से मेरा दिल कुचल गया.

उनकी सजी संवरी हुई जुल्फे हाय क्या कहने
मैंने निगाह डाल कर जुल्फों को मैला कर दिया.

न सलाम याद रखना न मेरा पैगाम याद रखना
आरजू है जानी दिल में मेरा नाम याद रखना.

दिल को ठेस लगी है फाड़कर दिखा नही सकते
दिली ठेस को सुनाना चाहे तो सुना नही सकते.

............

15.11.08

*कुछ मस्ती भरे चुटकुले*

एक जेबकट ने एक आदमी की जेब में हाथ डाला और पकड़ा गया
पकड़ने वाले ने जेबकट से कहा - तुम्हे शर्म नही आती है ?
जेबकट - शर्म तो तुम्हे आना चाहिए अपनी जेब में एक रूपया तक नही रखते हो.
***

अध्यापक - बच्चो क्या जानते हो भारत का सबसे बड़ा बंदरगाह कौन सा है ?
छात्र - जी सर, हमारे घर के पीछे है वहां ढेर बन्दर एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर कूदते देखे जा सकते है.
***

एक गंवार आदमी पहली बार शहर में सिनेमा देखने गया . पिक्चर शुरू होने के पहले सिनेमा हाँल की सारी बत्तियां बुझा दी गई . यह देखकर वह गंवार आदमी चकित रह गया और वह दौडा दौडा सीधे सिनेमा के मैनेजर के पास गया और मैनेजर से वह बोला - क्या हम उल्लू गंवार है जो हम अंधेरे में सिनेमा देखेंगे.
***

एक दोस्त दूसरे दोस्त से - क्यो भाई तुम्हारे यहाँ एक नौकरानी है वह तुम्हारे कपडे धोती थी आज क्या बात है यार तुम कपडे धो रहे हो ?
दूसरे दोस्त ने जबाब दिया - यार मैंने उससे शादी कर ली है .
***

पहली लड़की - मैंने उससे अपनी सगाई तोड़ दी है मै उससे नफ़रत करती हूँ और मै उससे प्यार नही करती हूँ .
दूसरी लड़की - पर तुमने सगाई की अंगूठी अभी तक पहिन रखी है ऐसा क्यो ?
पहली लड़की - ओह मै इस अंगूठी को अब भी प्यार करती हूँ .
***

भिखारी - असल में मै एक राईटर हूँ मैंने एक पुस्तक लिखी है जिसका नाम है " पैसे कमाने के ह़जार तरीके "
राहगीर - फ़िर तुम भीख क्यो मांग रहे हो ?
भिखारी - यह भी उनमे से एक तरीका है .
***

11.11.08

पंचतंत्र की कहानी : कामचोर

पंकजवन में टीपू नाम का एक बन्दर था जो जानवरों में सबसे चालाक था. एक दिन रीतू जंबो हाथी और बिन्दु भालू एक साथ बैठे थे वे सभी परेशान थे . उनकी परेशानी यह थी कि जब दूरदराज से उनके नाम की कोई चिट्ठी आती थी तो उसे लाने में लम्बू जिराफ लाने में काफी समय लगाता था . वगैर पैसे दिए कोई भी चिट्ठी उन्हें नही मिलती थी.

एक दिन सबने बैठकर एकमत से सहमत होकर यह निश्चय किया कि पंकजवन का डाकिया टीपू बन्दर को बनाया जाए क्योकि वह चुस्त और चालाक भी है . उसी दिन से टीपू बन्दर को पंकजवन का डाकिया बना दिया गया . टीपू बन्दर समय पर सभी को डाक लाकर दे देता था . टीपू बन्दर ने देखा कि उसे सभी चाहते है तो उसने पैसो की जगह हर एक से केला लेना शुरू कर दिया . धीरे धीरे टीपू बन्दर कामचोर होता गया और उसकी कामचोरी बढती गई . फ़िर धीरे धीरे उसने सभी से पैसे लेना शुरू कर दिया.

जब सभी ने देखा की टीपू बन्दर कामचोर हो गया है और सभी से पैसे लेने लगा है और सबने बैठकर पंकजवन में एक बैठक आयोजित की और सर्वसम्मति से निर्णय पारित किया कि अब टीपू बन्दर को हटा दिया जाए और बिन्दु भालू को डाकिया बना दिया


परन्तु इसी बीच जम्बो हाथी बीचमे कूंद पड़ा और बोला अब इस जंगल में कोई डाकिया नही बनेगा . तो सभी जानवरों ने उससे कहा कि नया डाकिया नही बनेगा तो हम लोगो को चिट्ठी कैसे मिलेगी . जंबो हाथी ने कहा - अब शहर में अपने नाते रिश्तेदारों दोस्तों भाई बहिनों और माता पिता को यह संदेश भिजवा दो कि वे अब चिट्ठी न लिखे तो आप सभी आगे देखेंगे कि टीपू बन्दर घर में बैठा रहेगा.

बिन्दु भालू ने कहा भैय्या जम्बो आपका आइडिया बहुत अच्छा है मगर अगर शहर में किसी को कुछ हो गया तो ख़बर कैसे पता लगेगी . सभी जानवर एक साथ बोले हाँ हाँ बताओ कैसे पता चलेगा ?

जंबो हाथी ने कहा - सब शांत होकर मेरी बात सुनो हम सब मिलकर एक साथ पंकज वन में एक बूथ खोलेंगे और जब नंबर लगायेंगे तो बात हो जाया करेग . सभी जानवर अपने अपने घरो में टेलीफोन लगा ले जिससे उन्हें कभी डाकिये के भरोसे रहना नही पड़ेगा यह सुनकर सभी जानवर बहुत खुश हो गए . . यह सब बातें टीपू बन्दर सुन रहा था उसे अपनी भूल का एहसास हुआ और उसने बहुत पश्चाताप किया और उसने सभी जानवरों से माफ़ी मांगी.

रिमार्क - उपरोक्त कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपना काम ईमानदारी से संपादित करना चाहिए और कामचोर नही बनना चाहिए . ईमानदारी सबसे अच्छी नीति मानी गई है और इसका उल्लेख सभी धर्मग्रंथो और कहानियो में मिलता है . .नीति शिक्षा में ईमानदारी पर हमेशा जोर दिया जाता है और ईमानदारी के सन्दर्भ में तरह तरह के पाठ लोगो को पढाये जाते है पर इसके बावजूद लोग गलती कर बैठते है ऐसा क्यो ?

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8.11.08

व्यंग्य : हमरे ब्लॉगर भैय्या चुनाव के पहले चित्त हो गए ....

हमरे एक दोस्त है . भैय्या बात इ है कै वे कछु दिनन से ब्लॉग लिखन लगे है और बेवा जगत में बड़ा नाम कमाईलियन है . मै उनका तनिक भी इस पत्रा में नाम न लिख्वे करू . कायके कहूं भैय्या खो पता चलवे करे तो तो समझो अपनी खैर नही.

मै उनको काल्पनिक नाम रामरतन हिन्दी ब्लॉगर इ पात्र में लिख देत हो . अपने रामरतन हिन्दी बिलागरवा है कछुक दिनों में उन्होंने बड़ा नाम कमा लिया है . जर्मनी कनाडा अमेरिका सिंगापुर और भारत के सभी नामी गिरामी शहरों के ब्लॉगर उनकी बेवा साइड में टीप देने वो का बोलत है कमेंस देने आत है सो अपने रामरतन ब्लागरवा को भारी घमंड हो गया है रात दिनन कम्पूटरवा में अपनी अंगुलियाँ ठोकत रहत है और अपनी आंखे फोडत रहत है.

सरकारी कर्मचारी है सो ब्लॉग से कमाई भी नही कर सकत है और विज्ञापन की पर्ची भी नही चिपका सकत है . कही कमाई का किसी को पता चल गया सो सर मुढाये बिना ओले पड़ने का खतरा अधिक है . पर अपने भैय्या है बड़े लालची हमेशा पैसो की जुगत करत रहत है.

अब हमरे प्रदेशवा में चुनाव का माहौल चल रहा है . उम्मीदवारों ने फॉर्म जमा कर दिए है और अपनी सम्पति का ब्यौरा भी चुनाव आयोग को दे दिए है . जो नाक पोछत थे जो साईकिल की टूटी सीट पर बैठकर सवारी किया करते थे आज वे करोड़पति है उनको चुनाव लड़ने की झंडी मिल गई है वे मैदाने ज़ंग में उतरने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाने में लगे है और रुपया पैसा पानी की तरह बहा रहे है क्योकि उन्हें मालूम है कि जीतने के बाद एक करोड़पति से दशानन करोड़पति बन जावेंगे.

खैर छोडिये अब अपना अपने असल मुद्दे पे वापिस चल पडत है . हाँ ब्लॉगर भइया रामरतन को किसी ने सलाह दे डाली कि भैय्या जुगत बैठा लो और इस चुनाव में वेव साइड में किसी नेता का प्रचार कर डारो और कमाई कर डारो मौका है भइया . अपने रामरतन भैय्याँ जी जुगत भिड़ने में जुट गए ..

एक दिन अपने क्षेत्र के अंगूठा छाप पूर्व विधायक भौतई पैसन वाले है को ख़बर मिली कि अपने रामरतन हिन्दी ब्लॉगर है विश्व में उनकी चार चार वेवसाइड को लोग चाव लेकर पढ़त है देश विदेश के लोग टीप देने उनके ब्लागरवा में आत है क्यो न अपन अपना चुनाव प्रचार वेवसाइड में करा दे देश विदेश में प्रचार होगा नाम होगा दूर से वोट मिल जावेगी . सो झट से अपने रामरतन ब्लागरवा के पास अपनी लकदक कार लेकर पहुँच गए.

अपने भैय्याँ जी को प्रचार करने को कहा और ढेर सा पैसा देने कि बात भी कही . अपने भैय्याँ जी टेस में आ गएँ झट से उनई के सामने अपने ब्लागवा में उनका प्रचार लिखने लगे.

इसी बीच का भओ कि वहां अपुन पहुँच गए और अपुन ने जुगत से सारी बातें सुनी और अपनी ताजी ताजी खोपडी से समझी और फ़िर एक कोने में उ नेता को ले गया और उसे समझाया -

भइया तुम लगे हो चुनाव विधानसभा का है तो तुम अपनों प्रचार पूरे विश्व में कराना चाहते हो का तुम्हे सारी दुनिया के लोग वोट देवे आहे . जा बताओ तुम्हे वोट विधान सभा क्षेत्र से मिलने है कै सारी दुनिया से . तुम्ह के नाहक पैसा खर्चा करत हो और समय ख़राब करत हो . नेताजी ने अपनी खोपडी खुजाई फ़िर उसके बाद बात उनके समझ में कुछ आई और और तुंरत अपनी लकदक कार से वहां से फ़ुट लिए .

यह देखकर हमरे बड्डे को खूब गुस्सा आई और उन्होंने मुझे खूब लाल पीली ankhe दिखाई और दहाड़ कर बोले यार तुमने मेरी होने वाली कमाई पर पानी फेर दिया यार मेरा मुंडा ख़राब हो गया है तुम यहाँ से फ़ुट जाओ .

फ़िर का है कि अपुन भी ठहरे ब्लॉगर भैय्या सो अपुन ने भी छूट गोली चलाई और भैय्याँ से कहाँ शुक्र करो -

रामरतन मेरे आने के कारण तुम बच गए वरना चुनाव में नेताजी का प्रचार करने के आरोप में तुम्हारी सरकारी नौकरी चली जाती फ़िर उसके बाद तुम रोड पर पचास रुपये रोज पर राजनीतिक दलों का झंडा लेकर घूमते नजर आते .

यह सुनकर अपने रामरतन भैय्याँ ने सर झुका लिया . इसके बाद मै भी यह कहते हुए वापिस लौट गया "कि वेवकूफो की दुनिया में कमी नही है" . सुना है कि तब से अपने ब्लागर भैय्याँ घर में बीमार पड़े है और मुझे जरुर कोस रहे होंगे.

आखिर आप सभी बताईं कि इसमे हमरी का गलती है मैंने तो उसकी सरकारी नौकरी बचाई और नेताजी के वेवाजगत में प्रचार में नाहक खर्च होने वाले रूपये पैशैन बचाओ . पैसा की लालच में चुन्नव होने के पहले अपने ब्लागरवा भैय्या रामरतन पहले से चित्त हो गए है अब आप ही बताइन कि इस्मा हमरी का गलती है.

व्यंग्य - महेंद्र मिश्रा रचनाकार.

6.11.08

चुटकुले : ये भी खूब रही

मालिक नौकर से जरा दस तारिख का अखबार लाओ
नौकर - सर दस तारीख का अखबार मिल नही रहा है . तारिख ६ और ४ तारीख का अखबार ला देता हूँ इसे जोड़ ले और दस तारीख का अखबार मानकर इसे पढ़ ले.
.......

मालिक - तुम्हे इस कारखाने में काम करते कितने साल हो गए है ?
नौकर - हुजूर पैसठ साल
मालिक - फ़िर तुम्हारी उम्र क्या है ?
नौकर - साब चालीस साल
मालिक - तुम्हारी उम्र कम है तो तुम्हे नौकरी करते पैसठ साल कैसे हो गए .
नौकर - सर आपकी फेक्टरी में ओवर टाइम बहुत होता है.
.......

पति - प्रिये यह बताओ कि वशीकरण क्या है ?
पत्नी - याने पुरूष को अपने वश में कर लेना फ़िर उसके बाद चाहे जो उससे करवा लेना.
पति - पति तुम सही नही कह रही हो यह वशीकरण नही वरन यह तो शादी है.
.....

लेखक - मै एक सनसनीखेज उपन्यास लिख रहा हूँ.
लेखक का मित्र - इस छापेगा कौन ?
लेखक - इसे तो जासूस पता करेगा.
..हा.....हा. हा हा .

......

4.11.08

बच्चे मन के सच्चे

बच्चा - " राग,द्वेष, बैर आदि बुरे भावो से रहित होता है "

Mensagens Para Orkut - MensagensMagicas.com



रिमार्क- चुनाव ड्यूटी में होने के कारण आप सभी से लगभग २० दिनों तक दूरी रहेगी. क्षमाप्रति हूँ.

2.11.08

माइक्रो पोस्ट - सबक : दूरियां और नजदीकियाँ.

Mensagens Para Orkut - MensagensMagicas.com


ये दूरियां मजबूरी हो सकती है मगर इतनी भी बड़ी नही है कि बने बनाये रिश्तो को पल में तोड़ दे .वक्त गर आ जाए अगर तो सच्चे प्रेम और सच्चे रिश्तो की डोर दूरियों को भी लांघकर नजदीकियो में बदल देती है, चाहे फ़िर वह झूठा बहाना ही क्यो न हो .......

31.10.08

जातक कथाये : कपटी सियार

बोधिसत्व ने एक चूहे के रूप में जन्म लिया वे बड़े बुद्धिमान थे और हजारो चूहों के साथ जंगल में रहते थे . वे इतने बड़े थे कि छोटे सुआर के जैसे लगते थे . जंगल में एक धूर्त सियार रहता था वह बड़ा ही धूर्त था और उसकी निगाहे सदैव जंगल के चूहों पर रहती थी . वह इन चूहों को कई दिनों से खाने की योजना बना रहा था और अंत में एक योजना उसने सोची और वह चूहों की बस्ती के पास गया और सूर्य की ओर मुँह करके एक टांग के बल खड़ा हो गया.

एक समय बोधिसत्व भोजन की तलाश में निकले ओर उन्होंने इस सियार को सूर्य की ओर मुँह किए इस सियार को देखा जोकि एक टांग के बल खड़ा था. बोधिसत्व ने सोचा वह शायद एक संत है जो एक टांग के बल खड़ा होकर ध्यानमग्न है .बोधिसत्व उसके पास ओर नमस्कार कर उससे उसका नाम पूछा.

सियार ने उत्तर दिया - मेरा नाम भगत है

चूहे बोधिसत्व ने उससे पूछा - तुम एक टांग के बल क्यो खड़े हो ?

सियार ने कहा - यदि मै चारो टांगो के बल पर खड़ा हो जाऊँगा तो प्रथ्वी मेरा भार सहन नही कर पाएगी.

चूहे बोधिसत्व ने उससे पूछा - किंतु तुमने अपना मुँह क्यो खुला रखा है ?

सियार ने कहा - मै सिर्फ़ हवा खाता हूँ हवा में साँस लेने के लिए ओर हवा ही मेरा भोजन है.

चूहे बोधिसत्व ने प्रश्न किया - तुम सूर्य की ओर मुँह करके क्यो खड़े हो ?

सियार - मै इस तरह से सूर्य की आराधना करता हूँ.

बोधिसत्व सियार की बाते सुनकर बड़े प्रभावित हुए.

अब क्या था सुबह शाम चूहे सियार को प्रणाम करने आने लगे . सियार भी बड़ा खुश था क्योकि उसे ऐसा अभाष हो रहा था की अब उसकी योजना सफल होने लगी है . चूहे लाइन लगाकर सियार को प्रणाम करते थे और चूहे जब में वापिस जाने लगते थे तो लाइन के अन्तिम चूहे को सियार पकड़ कर खा जाता था और इस तरह से किसी को पता भी नही चलता था कि लाइन के आखिरी चूहे को पकड़कर खा गया है . धीरे धीरे चूओ की संख्या कम होती गई और चूहे जाति का मुखिया भी बेहद परेशान था कि आखिर क्या बात है कि उसके समाज के चूहों कि संख्या में लगातार कमी आ रही है .

उसने बोधिसत्व से इस बात की चर्चा की. उन्हें सियार पर शक हुआ कही यह सियार की घपलेबाजी तो नही है . एक दिन बोधिसत्व ने सियार की परीक्षा लेने की सोची . बोधिसत्व ने अगले दिन सारे चूहों को आगे जाने दिया और अंत में बोधिसत्व गए . हमेशा की तरह सियार ने लाइन के आखिरी चूहे बोधिसत्व को दबोचने की कोशिश की

पर बोधिसत्व बहुत तेज गति से निकल गए और जाते जाते पलटकर सियार की ओर मुड़े ओर कहा - धूर्त सियार तुम साधू के रूप में मक्कार हो . तुमने संत बनने का नाटक किया तुम ढोंगी पाखंडी ओर बहुत बड़े धूर्त हो . सब चूहे यह सब सुन रहे थे तो असल सच उनके सामने आ गया ओर वे क्रोधित हो गए ओर समूह में एकत्रित होकर धूर्त सियार पर हमला कर दिया ओर उसे जंगल से खदेड़ दिया . धूर्त सियार अपने प्राण बचाकार जंगल से भाग गया .

रिमार्क - हमें ऐसे ढोंगी पाखंडी ओर धूर्त साधुओ से बचना चाहिए ओर इनका बहिष्कार करना चाहिए . हमारे देश में ऐसे ढोंगी पाखंडी साधुओ की कमी नही है जो देश की भोली भली जनता को अपने मायाजाल में फंसाकर लूट लेते है . आए दिन अखबारों में मीडिया चैनलों में ऐसे ढोंगी साधुओ के खुलासे होते रहते है जो बलात्कार करने से लेकर धन संपत्ति तक लूट लेते है.

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28.10.08

दिवाली के अवसर पर हँस ले : दिवाली पर फुलझडी और बम

एक मछियारे ने अपने साथी मछियारे से कहा - भाई मैंने इतनी बड़ी मछली पकडी की वह नाव में नही समां रही थी और उसे तौलने के लिए कोई तराजू भी नही मिल रही थी तो मैंने उस मछली की फोटो ले ली और फ़िर रुक मुस्कुराया और रुक कर बोला तुम्हे मालूम हो कि उस मछली कि फोटो का वजन ११ किलो था तो उस मछली का वजन कितना रहा होगा.

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एक सेठ ने एक पंडित जी को दिवाली के दिन अपने घर निमंत्रण पर बुलाया और उन्होंने पेट भरकर खाया और अपनी तौंद पर हाथ फेरकर एक लम्बी डकार ली और कहा बस भर गई है . उसके बाद पंडित जी के सामने दो मलाई कि दो प्लेट राखी गई और पंडित ने वे प्लेट भी साफ़ कर दी . सेठ का लड़का पास में खड़ा था बोला पंडित जी आपकी बस भर गई फ़िर भी अपने दो प्लेट मलाई भी खा ली .
लडके से पंडित जी बोले- बेटा बस तो भर गई थी परन्तु कंडेक्टर की सीट खाली थी.

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अरे भाई दिवाली के दिन तुम चम्मच धोने क्यो बैठ गए हो ?
अगले ने उत्तर दिया - धोने दे यार वरना जेब ख़राब हो जावेगी.

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दिवाली के दिन एक पहलवान एक जूते की दूकान पर जूते लेने गया . दुकानदार ने उसे कई जूते दिखाए पर पहलवान को कोई जूता फिट नही हो रहा था .
आखिर में पहलवान ने एक में पैर डालते हुए कहा भाई इसे पैक कर दो यह ठीक रहेगा .
दूकानदार बोला - हुजूर माफ़ कीजिए यह जूता नही है यह जूते का डिब्बा है.

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प्रोफेसर - क्या तुम मुझे सोलहवी शताब्दी के वैज्ञानिको के बारे में कुछ बता सकते हो ?
छात्र - सर वे सब मर गए है.

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कबाडी बाजार में एक आदमी एक कबाडी से पुरानी पुस्तके खरीद रहा था . ग्राहक को दूकान में एक पुरानी किताब दिखी जिसका नाम था " करोड़पति कैसे बने" पर उस पुस्तक में आधे पन्ने थे .
ग्राहक दूकानदार से बोला - भाई दुकानदार जी इस किताब में आधे पन्ने गायब है.
दूकानदार ने कहा - आधे पन्नो में भी तो आधा करोड़पति बना जा सकता है.

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दिवाली के दिन एक दूकान पर एक ग्राहक संतरे खरीदने गया .
ग्राहक को देखकर दूकानदार तपाक से ग्राहक से बोला - सब पिछले सप्ताह जो आप संतरे ले गए थे वो कैसे रहे ?
ग्राहक - संतरे बड़े ताजे रहे.
दूकानदार ने फौरन कुछ संतरे ग्राहक की और बढ़ते हुए कहा साब इन्हे ले जाओ पिछले हफ्ते के उन्ही में से बचे है.

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दिवाली धमाका
एक आदमी थाने पहुँचा और थानेदार से बोला आप मेरे घर की चाबी रख लीजिये .
थानेदार सकपका गया और बोला क्यो ? वह आदमी बोला आज दिवाली के अवसर पर एक ड्रिंक पार्टी है और जाहिर है कि मै पार्टी में छककर व्हिस्की और वोदका पिऊंगा और ऐसी हालत में मेरी चंबियाँ गिर सकती है और मै यह सोच रहा हूँ कि नशे में धुत सड़क से मुझे पकड़कर कोई पुलिसवाला थाने लायेगा तो मै आपसे घर की चाबी ले लूँगा.

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मालकिन नौकर से तुमने फ्रिज साफ़ कर दिया .
नौकर बोला - हाँ मालकिन
मैंने फ्रिज अच्छी तरह से पूरी तरह से साफ़ कर दिया है हर चीज स्वादिष्ट और लाजबाब थी.

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खानसामा रोने लगा कि हाय साहब का कुत्ता मर गया बड़ा प्यारा था दुलारा था हर काम अच्छी तरह से कर देता था.
साहब - लगता है तुम्हे मेरे कुत्ते से बड़ा लगाव और प्यार था .
खानसामा - हुजूर पूछिए मत वह बड़े प्यार से जूठी प्लेट अपनी जीभ से साफ कर देता था . हुजूर मै प्लेट धोने धुलने धुलाने के चक्कर से बच जाता था हाय अल्लाह अब प्लेट कौन साफ़ करेगा और यह कहकर बेहोश हो गया.

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शिक्षक छात्र - इसे दो प्राणियो के नाम
बताओ जिनके दाँत नही होते है ?
छात्र - हाथ उठाकर कहा सर दादा और दादी.

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